उत्तराखण्ड एक परिचय –
भारत के उत्तर में यह राज्य आदिकाल से ही तपस्वियों, तीर्थयात्रियों तथा राजाओं के आकर्षण का केन्द्र रहा है। इस राज्य का गठन 9 नवम्बर, 2000 को भारत के 27वें राज्य के रूप में किया गया।
उत्तराखण्ड राज्य का परिचय –
राज्य के पूरब में नेपाल तथा पश्चिम में हिमाचल प्रदेश स्थित है। उत्तर में तिब्बत चीन की अन्तर्राष्ट्रीय सीमा है, तो दक्षिण में उत्तर प्रदेश। काली नदी उत्तराखण्ड और नेपाल की सीमा निर्धारित करती है। टौंस नदी हिमाचल प्रदेश से राज्य को अलग करती है। प्रदेश का कुल क्षेत्रफल 53,483 वर्ग किमी है, जिसमें कुल वन क्षेत्र 34.651.014 वर्ग किमी है। उत्तराखण्ड अपनी जलवायु की विविधता के लिए प्रसिद्ध है। यही कारण है कि वन सम्पदा, वनस्पतियों, जीव-जन्तुओं और मानव जाति की विविधता ने उत्तराखण्ड को सांस्कृतिक विविधता से भी समृद्ध किया है।
राज्य में कई ऊंचे पर्वत शिखर हैं, जिनकी ऊँचाई 2,000 मी से 7,000 मी तक है। उत्तराखण्ड के अधिकांश शिखर हिममण्डित रहते हैं। गंगा, यमुना, सरयू, गोमती, रामगंगा पिण्डार, टौंस, काली, गौरी, धौलीगंगा, कोसी, भिलंगना आदि अनेक नदियाँ इन्हीं शिखरों से निकलती हैं।

इस राज्य को दो भागों में विभाजित किया गया है –
- गढ़वाल मण्डल
- कुमाऊँ मण्डल
उत्तराखंड में कितने जिले हैं?
राज्य में जिलों की संख्या 13 है, जो दो मंडलों में विभाजित निम्नलिखित प्रकार से हैं –
- गढ़वाल मण्डल – देहरादून, पौड़ी गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल, चमोली, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग और हरिद्वार।
- कुमाऊँ मण्डल – अल्मोड़ा, नैनीताल, पिथौरागढ़, बागेश्वर, चम्पावत, ऊधमसिंह नगर हैं।
(नोट : 15 अगस्त, 2011 को 4 नए जिले बनाने की घोषणा की गई हैं, जो निम्न प्रकार हैं- कोटद्वार, यमुनोत्री, डीडीहाट, रानीखेत।
साक्षरता की दृष्टि से राज्य का देश में 17वां स्थान है। यहां की साक्षरता दर 79.63% है, जिसमें पुरुष साक्षरता 88.33% और महिला साक्षरता 70.70% है। देश की औसत साक्षरता दर 74.04% है और उत्तराखंड की औसत साक्षरता दर देश की औसत साक्षरता दर से 5.59% अधिक है। यहां का जनसंख्या घनत्व 189 है।
मानसखंड तथा केदारखंड –
यह राज्य दो क्षेत्रों, गढ़वाल और कुमाऊं में विभाजित है। प्राचीन काल में कुमाऊं को ‘मानसखंड’ और गढ़वाल को ‘केदारखंड’ कहा गया है। ‘स्कंद पुराण’ के ‘केदारखंड’ में हिमालय को पांच भागों में बांटा गया है, जिसमें नेपाल, कुरमांचल (मानस), केदार, जालंधर और कश्मीर हैं। स्कंद पुराण के मानसखंड में कुमाऊं के धार्मिक स्थलों, पहाड़ों और नदियों की महानता का विवरण मिलता है। कई पुराणों में कुमाऊं-गढ़वाल का उल्लेख मिलता है। इसका विवरण महाभारत के वन पर्व में भी मिलता है।
उत्तराखंड का पहला राजवंश –
उत्तराखंड क्षेत्र (गढ़वाल-कुमाऊं) का पहला राजवंश कत्यूरी माना जाता है। राहुल सांकृत्यायन ने कत्यूरी वंश का कार्यकाल 850 ई. से 1060 ई. तक माना है। लेकिन बद्रीदत्त पाण्डेय इसे 700 ई. से दो से तीन हजार वर्ष पूर्व मानते हैं। कल्युरियों की राजधानी जोशीमठ और कार्तिकेयपुर थी। यह भी कहा जाता है कि दिल्ली और रोहिलखंड भी कत्यूरी क्षेत्र में थे, बाद में कुमाऊं में चांद वंश और गढ़वाल में पंवार वंश का शासन था।
कुमाऊं और गढ़वाली शब्दों की उत्पत्ति कैसे हुई?
- कुमाऊं शब्द की उत्पत्ति कुर्माचल से मानी जाती है। यह एक प्रचलित मान्यता है कि भगवान विष्णु के कूर्मावतार तीन साल तक चंपावती नदी के पूर्व में कूर्म पर्वत (कानादेव) में खड़े रहे, जिसके बाद इसका नाम कूर्मचल रखा गया, जो धीरे-धीरे कुमाऊं के नाम से जाना जाने लगा। कुमाऊं नाम का उल्लेख ऐन-अकबरी में भी मिलता है। चांद राजाओं ने तराई भाबर में रुद्रपुर, बाजपुर और काशीपुर शहरों की स्थापना की।
- गढ़वाल की उत्पत्ति गढ़ शब्द से मानी जाती है, जिसमें गढ़ या किलो की बहुतायत थी। ऐसा कहा जाता है कि पहले यहां 52 ठाकुरिया (गढ़) थे, जो बाद में विभिन्न पट्टियो और परगना के नाम से बदल गए। गढ़वाल में भावर क्षेत्र के अंतर्गत पाटलिदून और कोटदून आते हैं।
उत्तराखण्ड के प्रमुख ग्लेशियर तथा दर्रे –
- ग्लेशियर – यहाँ के प्रमुख ग्लेशियरों में गंगोत्री, यमुनोत्री, पिण्डार, खतलिंग, जौलिंगकोंग, कफनी, मिलम और सुन्दरदूँगा हैं।
- दर्रे – यहाँ के प्रमुख दर्रों में माणा, नीति, थांगला, तुनजुनला, बेल्चाधूरा, लम्पियाधूरा, कुंगरी-बिंगरी, ऊँटाघूरा, लिपूलेख, दारमा आदि प्रमुख हैं।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार प्रदेश की जनसंख्या 1,01,16,752 है जिसमें पुरुषों की संख्या 51.54, 178 और महिलाओं की संख्या 49.62.574 है। प्रति एक हजार पुरुषों पर महिलाओं का औसत 962 है।
उत्तराखण्ड राज्य के प्रतीक चिन्ह –
उत्तराखण्ड प्रदेश के राज्य चिह्न और प्रतीकों का निर्धारण वर्ष 2001 में किया गया। राज्य पशु कस्तूरी मृग, राज्य पक्षी मोनाल, राज्य पुष्प ब्रह्मकमल और राज्य वृक्ष बुराँश घोषित किए गए हैं। यह प्रदेश की सम्पदा मानी जाती है और इनका संरक्षण तथा संवर्द्धन प्रदेश सरकार और प्रदेश के सभी नागरिकों का परम कर्त्तव्य माना गया है।
1.राजकीय चिह्न
प्रदेश के प्रतीक चिह्न में एक गोलाकार मुद्रा में तीन पर्वतों की एक श्रृंखला के ऊपर सम्राट अशोक की लाट को उकेरा गया है तथा उसके नीचे गंगा नदी की लहरों को दिखाया गया है। यह चिह्न प्रदेश के सभी कार्यालयों में प्रयुक्त किया जा रहा है।

2.राजकीय पशु : कस्तूरी मृग –
कस्तूरी मृग लगभग 20 इंच ऊँचा छोटे आकार का होता है। इसके सिर पर सींग नहीं होते हैं। इस वन्य प्राणी के पास अपनी रक्षा के लिए दो दाँत होते हैं, जो इतने लम्बे होते हैं कि जबड़े के दोनों ओर बाहर निकले होते हैं।

3.राजकीय वृक्ष : बुरॉस
कस्तूरी मृग (मास्कस क्राइसोगॉस्टर) को उत्तराखण्ड का राजकीय पशु घोषित किया गया है। भारत में लुप्तप्राय यह जीव कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम आदि ऊँचे हिमालय क्षेत्र में पाया जाता है। उत्तराखण्ड में यह केदारनाथ, फूलों की घाटी, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ जनपद के लगभग 15,000/ फीट की ऊँचाई वाले जंगलों में पाया जाता है।

उत्तराखण्ड का राज्य वृक्ष ‘बुराँस’ है। यह मध्यम ऊँचाई का सदापर्णी वृक्ष है। यह लगभग 1,500 से 3.500 मी ऊँची पहाड़ियों पर पाया जाता है। मार्च, अप्रैल में जब इस वृक्ष पर फूल खिलते हैं, तो लगता है कि पूरे जंगल को सजाया गया है। इसकी लकड़ी काफी मुलायम होती है। पत्ते मोटे होते हैं। इसकी पत्तियाँ पशुओं के नीचे बिछाने के लिए तथा खाद के लिए उपयोगी होती हैं। बुराँश का मुख्य आकर्षण इसके चटख लाल रंग के फूल होते हैं।
4.राजकीय पुष्प : ब्रह्मकमल
हिमालय में लगातार बढ़ रहे जनसंख्या के दबाव और संरक्षण के अभाव के चलते उत्तराखण्ड का राजकीय पुष्प ‘ब्रह्मकमल’ (सोसूरिया अबवेलेटा) विलुप्ति के कगार पर पहुँच गया है। दरअसल उत्तराखण्ड में पर्यटकों, पर्वतारोहियों और घुमक्कड़ों को यह जानकारी नहीं है कि यह पुष्प कितना दुर्लभ है। इस जानकारी के अभाव में वे इसे आम पुष्पों की तरह तोड़ देते हैं। इससे धीरे-धीरे इस पुष्प की प्रजाति समाप्त हो रही है। उत्तराखण्ड से लेकर कश्मीर तथा मध्य हिमालयी क्षेत्रों में लगभग 12 से 15 हजार फीट तक ऊँचाई पर नमी युक्त जलवायु वाले क्षेत्रों में यह पुष्प खिलता है।

5.राजकीय पक्षी : मोनाल
“मोनाल” (लोफोफोरस इम्पीजेनस) उत्तराखण्ड का राजकीय पक्षी घोषित किया गया है। यह पक्षी हिमालय क्षेत्र में 2,300 से 5,000 मी की ऊँचाई पर घने जंगलों तथा बुग्यालों में पाया जाता है। मोनाल उत्तराखण्ड के अलावा कश्मीर, नेपाल, सिक्किम, भूटान, पाकिस्तान के हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है मोनाल नेपाल का राष्ट्रीय पक्षी भी है। हिमाचल प्रदेश शासन ने भी इस पक्षी को ही राजकीय पक्षी माना है। मोनाल पक्षी का वैज्ञानिक नाम ‘फीवेण्ट’ है।

उत्तरांचल से उत्तराखण्ड कैसे और कब बना?
24 अगस्त, 2006 को केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने उत्तरांचल राज्य के गठन के उपरान्त से ही उठ रहे राज्य के नाम सम्बन्धी विवाद के तहत इस राज्य का नाम बदलकर उत्तराखण्ड रखने के प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान की थी। प्रधानमन्त्री की अध्यक्षता में मन्त्रिमण्डल की बैठक में इस आशय के प्रस्ताव को अनुमोदित किया।
भारतीय संविधान के भाग के अनुच्छेद-3 के तहत किसी राज्य के नाम बदलने के प्रस्ताव को मन्त्रिमण्डल की मंजूरी के बाद राष्ट्रपति के पास विचारार्थ भेजा जाता है। इस संवैधानिक औपचारिकता को पूरा करने के लिए राष्ट्रपति इस प्रस्ताव को राज्य के विधानसभा के विचार जानने के लिए भेजता है। विधानसभा के विचार जानने के उपरान्त मन्त्रिमण्डल इस प्रस्ताव को संसद में पेश करता है।
इस प्रक्रिया के चलते 12 अक्टूबर, 2006 को उत्तरांचल राज्य की विधानसभा ने राज्य के नाम में परिवर्तन सम्बन्धी विधेयक 2006 को मंजूरी प्रदान कर दी, जिसके उपरान्त यह प्रस्ताव संसद के शीतकालीन सत्र (2006) में लोकसभा और राज्यसभा से पारित होने के पश्चात् 3 जनवरी, 2007 को राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर हो जाने के बाद इस राज्य का नाम बदलकर उत्तराखण्ड हो गया है।
उत्तराखंड की प्रमुख नदियाँ, झीलें व हिमानियाँ –
प्रकृति ने उत्तराखण्ड राज्य को जल संसाधनों का उपहार दिया है। हिमालय भारत का सबसे बड़ा जल संग्रहण क्षेत्र है। हिमालय से टकराने के कारण मानसूनी हवाएँ आगे नहीं बढ़ पाती और व्यापक वर्षा करती है। मानसूनी हवाओं के अतिरिक्त भी यह क्रम चलता रहता है, फलत, हिमालय भारत का सबसे बड़ा जल स्रोत है। बर्फ से ढके पर्वतों से विभिन्न नदियाँ निकलती हैं, जो इस राज्य के सौन्दर्य के साथ उसके सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक विश्वासों को सुदृडता प्रदान करती हैं।
उत्तराखण्ड में टीस, यमुना, भागीरथी, भिलंगना, मन्दाकिनी, अलकनन्दा, पिण्डार, सरयू, गौरी, धौली, कुटी, काली आदि नदियाँ हैं, जो हिमनदों से जन्म लेकर एक दूसरे से मिलते हुए बंगाल की खाड़ी में पहुँच जाती हैं। लघु हिमालय से पश्चिमी रामगंगा, आरा, गाड, बिनो आदि का उद्गम दूधातोली की पहाड़ी से होता है। कौसानी की पहाड़ी से कोसी और भाटकोट से गंगास का उद्गम होता है। इसी प्रकार नंधौर, गोला, भाखड़ा, बौर, दाबका ढेला, खो, सोंग और असों अन्य मौसमी नदियाँ हैं।
उत्तराखंड में कितने नदी तंत्र हैं? तथा कौन-कौन से हैं?
उत्तराखंड में छोटे-बड़े कुल मिलाकर 6 नदी तन्त्र हैं जिनका विस्तृत वर्णन इस प्रकार है –
- गंगा नदी तन्त्र –
राज्य में गंगोत्री से देवप्रयाग तक गंगा को भागीरथी तथा देवप्रयाग के बाद गंगा नदी को गंगा के नाम से जाना जाता है। देवप्रयाग में भागीरथी और अलकनन्दा मिलकर जब गंगा के नाम से आगे बढ़ती हैं तब पौड़ी में नयार नदी इसमें मिल जाती है। फिर ऋषिकेश में दाई और से चन्द्रभागा नदी और थोड़ा और आगे से दाईं ओर से ही सोंग नदी इसमें मिलती है तथा हरिद्वार में रतमऊ व सोलानी नदियाँ मिलती हैं।
- भागीरथी उपतन्त्र –
भागीरथी नदी गंगोत्री हिमनद के गोमुख नामक स्थान से निकलती है। गंगोत्री के समीप भागीरथी में मिलुनगंगा, केदारगंगा व जाड़गंगा आदि नदियाँ मिलती हैं। गंगोत्री से आगे इसमें छोटी-छोटी कई नदियाँ मिलती हैं जिसमें सियागंगा प्रमुख है। टिहरी शहर (गणेशप्रयाग) में भागीरथी से मिलंगना नदी मिलती है। मेदेगंगा, धर्मगंगा, दूधगंगा, बालगंगा नदियों मिलंगना की सहायक हैं।
- अलकनन्दा उपतन्त्र –
अलकनन्दा चमोली के उत्तरी भाग में स्थित सतोपन्थ ताल से निकलती है। देवप्रयाग में भागीरथी में मिल जाती है। सरस्वती, विष्णुगंगा, धौलीगंगा, लक्ष्मणगंगा, नन्दाकिनी, विरथी, नबालिका, पिण्डार व मन्दाकिनी आदि नदिया इसकी सहायक है। अलकनन्दा में सर्वप्रथम लक्ष्मणगंगा नदी तथा केशवप्रयाग में सरस्वती नदी मिलती है। विष्णुप्रयाग में धौलीगंगा और विष्णुगंगा नदियाँ इसमें मिलती है। विष्णुप्रयाग से नीचे उतरने पर विरथी आदि नदियाँ इसमें मिलती हैं। कर्णप्रयाग में पिण्डर नदी इसमें मिल जाती है। रुद्रप्रयाग में मन्दाकिनी इसमें मिलती है फिर यह देवप्रयाग में भागीरथी से मिल जाती है।
- नयार उपतन्त्र –
पौड़ी के व्यास घाटी के पास बाईं ओर से नयार नदी गंगा में मिलती है। नयार नदी की दो शाखाएँ है-पूर्वी नयार व पश्चिमी नयार। जो दूधातोली पहाड़ी के दो सिरों से निकलकर पौड़ी में बहते हुए सतपुली नामक स्थान पर आपस में मिलकर गंगा में मिल जाती है।
- काली (शारदा) तन्त्र –
यह नदी पिथौरागढ़ के कालापानी नामक स्थान से निकलती है। यह नदी काकागिरी पर्वत के समानान्तर तथा भारत नेपाल का बॉर्डर बनाते हुए बहती है। चम्पावत के टनकपुर के निकट स्थित पूर्णागिरि तीर्थ के पास बरमदेव मण्डी के बाद से शारदा नदी के नाम से नेपाल में प्रवेश कर जाती है। कुठीयाग्टी, काली की प्रारम्भिक सहायक नदी है तथा संगचुम्ना, निकुर्ट तथा घुमका नदी कुठीयाग्टी की सहायक नदियाँ हैं।
काली नदी को सर्वाधिक जलराशि देने वाली सरयू नदी बागेश्वर के सरमूल नामक स्थान से निकलती है व पंचेश्वर से 40 किमी नीचे की ओर दाई ओर से काली नदी में मिल जाती है। बागेश्वर में गोमती नदी, सरयू में मिल जाती है।
- यमुना तन्त्र –
इस जल प्रवाह क्षेत्र में यमुना तथा टोंस दो प्रमुख नदियाँ हैं। यमुना का उद्गम यमुनोत्री ग्लेशियर है। इसकी छोटी वेणी हनुमान गंगा खरसाली के पास यमुना में विलीन हो जाती है। सबसे प्रमुख सहायक नदी टोस है, जो तमसा नदी के नाम से भी जानी जाती है। इसका उद्गम बन्दरपूँछ के उत्तरी भाग में है, जो कालसी में आकर यमुना से मिल जाती है।
उत्तराखंड राज्य की प्रमुख नदियाँ –
- अलकनन्दा –
इस नदी का उद्गम शिवलिंग शिखर के उत्तर-पूर्वी भाग में अलकापुरी स्थित सतोपन्य शिखर के हिमनद और सतोपन्थ ताल से होता है। ऊपरी भाग में इसे विष्णुगंगा कहा जाता है। इसमें लक्ष्मणगंगा, धौलीगंगा, नन्दाकिनी, पिण्डार, मन्दाकिनी, नबालिका, भागीरथी आदि नदियाँ आकर मिलती हैं। जल के घनत्व एवं अपने विशाल प्रवाह प्रदेश के कारण यह राज्य की प्रमुख नदी है। उत्तराखण्ड के पंच-प्रयाग इसी के पावन तट पर अवस्थित हैं। प्रसिद्ध बदरीविशाल तीर्थ इसी के तट पर स्थित है।
- काली या शारदा –
काली नदी का उद्गम कालापानी (नेपाल) से तथा मिलाम से गौरीगंगा का उद्गम है, जिनका संगम जौलजीवी में होता है तथा बरमदेव मण्डी के पश्चात् यह शारदा नदी के नाम से जानी जाती है।
- भागीरथी –
इस नदी का उद्गम गंगोत्री से 19 किमी दूर शिवलिंग शिखर के नीचे गोमुख हिमनद से होता है। इसमें केदारगंगा, जाह्नवी (जाड़) गंगा तथा भिलंगना नदियों का संगम होता है। मिलंगना खतलिंग हिमानी से निकलती है। खतलिंग हिमानी 3.658 मी की ऊँचाई पर स्थित है, जिसके आस-पास कई सुन्दर एवं आकर्षक सरोवर स्थित हैं। झाला के समीप सियागंगा भागीरथी में मिलती है। देवप्रयाग में अलकनन्दा एवं मागीरथी का संगम होता है। संगम के उपरान्त इसे गंगा नदी के नाम से जाना जाता है। गंगा हरिद्वार में हिमालय से उतरकर मैदान में प्रवाहित होती है और अन्त में बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। इस नदी की कुल लम्बाई 2,994 किमी है।
- भिलंगना –
टिहरी जनपद के उत्तरी छोर पर खतलिंग ग्लेशियर से निकलकर गणेशप्रयाग (पुरानी टिहरी) में भागीरथी से मिलती थी। अब यह सारा क्षेत्र टिहरी डैम में समा गया है। 110 किमी लम्बी यह नदीं भागीरथी की सबसे बड़ी सहायक नदी रही है। इस नदी की सहायक नदी बालखिल्य (बाल गंगा) है तथा महाश्रताल से इसका उद्गम है।
- मन्दाकिनी –
इस नदी का उद्गम चौराबाड़ी ताल से होता है। सोनप्रयाग में यह कालीगंगा से मिल जाती है। रुद्रप्रयाग में यह अलकनन्दा से मिलती है।
- यमुना –
उत्तरकाशी स्थित बन्दरपूँछ पर्वत के पश्चिमी भाग में यमुनोत्री काण्ठा से निकलकर 1.385 किमी की यात्रा पूरी कर इलाहाबाद में गंगा से मिल जाती है। यह राज्य के उत्तरकाशी एवं देहरादून जनपदों से होकर प्रवाहित होती है। इसकी मुख्य सहायक नदियाँ है टॉस (कालसी- विकास नगर), गिरि तथा आसना
- सरयू –
काली नदी को सबसे अधिक जलराशि देने वाली सरयू बागेश्वर के सरमूल नामक स्थान से निकली है। सरयू की प्रथम सहायक नदी गोमती है, जो बागेश्वर में सरयू में मिल जाती है इसमें पूर्वी रामगंगा तथा पेन्नार नदियाँ मिलती हैं।
- सोंग –
यह नदी देहरादून के दक्षिण-पूर्वी भाग में बहती हुई दीरभद्र के समीपवर्ती क्षेत्र में गंगा नदी में मिल जाती है। यह नदी सुरकण्डा पर्वत से निकलकर उत्तर-पश्चिम दिशावत प्रवाहित होते हुए मालदेवता के समीप विन्दाल नदी के जल को आत्मसात करते हुए आगे बढ़ती है। सुस्खा, सोंग नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है।
- घाघरा –
पर्वतीय भाग में (कणियाली) एवं मैदानी भाग में घाघरा के नाम से विख्यात इस नदी का उद्गम तकलाकोट के उत्तर-पश्चिम में माकचा चुंग हिमनद में है। गुरलामान्धाता के दक्षिण पश्चिम सिरे का चक्कर लगाती हुई मुख्य हिमालय तथा शिवालिक श्रृंखला को पार कर गहरी एवं संकीर्ण घाटी का निर्माण करती है। शिवालिक पहाड़ियों में नदी घाटी की चौड़ाई 180 मी तथा गहराई 600 मी से भी अधिक है। पर्वतीय क्षेत्र में टीला, सेती, बेरी आदि नदियाँ इसमें मिलती हैं।
- कालीगंगा –
यह नदी वासुकि ताल से निकलती है।
- कोसी –
इस नदी का उद्गम बिनसर तथा कौसानी की पहाड़ियों से होता है।
- धौलीगंगा –
इस नदी का उदगम नन्दा-त्रिशूली पर्वत श्रृंखला के पश्चिमी छोर से होता है। विष्णुप्रयाग में इसमें अलकनन्दा नदी मिलती है।
- नन्दाकिनी –
नन्दाकिनी नदी का उद्गम नन्दाघुँघटी से होता है, जो नन्दप्रयाग में अलकनन्दा से मिलती है।
- पश्चिमी रामगंगा –
इस नदी का उद्गम पौड़ी गढ़वाल के दूधातोली पर्वत से होता है।
- पिण्डार –
इस नदी का उद्गम पिण्डारी ग्लेशियर से होता है। यह चमोली जनपद के कर्णप्रयाग नामक स्थान पर अलकनन्दा से मिलती है। सबसे तेज गति की नदी होने के बावजूद इसके तटों का कभी कटाव नहीं होता है।
- पूर्वी रामगंगा –
इस नदी का उद्गम नामिक ग्लेशियर से होता है।