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उत्तराखंड पर्यटन | संपूर्ण जानकारी

उत्तराखंड पर्यटन

भारत के उत्तर में स्थित गिरिराज हिमालय की नयनाभिराम अलौकिक सौन्दर्य एवं शीतलता से अभिभूत देवभूमि उत्तराखण्ड आदिकाल से ही देश-विदेश के पर्यटकों यात्रियों को इस क्षेत्र की ओर आकर्षित करता आ रहा है। विश्व प्रसिद्ध चारधाम श्री बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री तथा हेमकुण्ड लोकपाल, नानकमत्ता, मीठा रीठा साहिब एवं पीरान कलियर नामक विभिन्न धर्मों के पवित्र तीर्थ स्थलों से युक्त इस प्रदेश में पर्यटन की प्रमुख विधा, तीर्थाटन प्राचीन काल से ही प्रभावी रही है।

भारत के उत्तर भू-भाग को हरा-भरा करने वाली पतित पावनी गंगा-यमुना के उद्गम स्थलों के इस प्रदेश की सांस्कृतिक परम्परा अलौकिक (नैसर्गिक सौन्दर्य तथा शीतल व प्राणदायिनी शुद्ध जलवायु पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए प्रमुख संसाधन) है।

उत्तराखंड पर्यटन | संपूर्ण जानकारी
उत्तराखंड पर्यटन | संपूर्ण जानकारी

उत्तराखंड राज्य की पर्यटन नीति (2001)

उत्तराखण्ड सरकार ने देशी तथा विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए पर्यटन नीति को मंजूरी दी है। इसके लिए सरकार ने उच्च स्तरीय पर्यटन विकास परिषद् बनाने का निर्णय लिया है। यह परिषद् राज्य में पर्यटन के विकास के लिए सुझाव देने वाली सर्वोच्च संस्था होगी। (उत्तराखण्ड पहला राज्य है जिसमें यह अनोखा प्रयोग किया गया है।

उत्तराखंड पर्यटन नीति के अन्य मुख्य बिन्दु इस प्रकार हैं –

  • पर्यटन को पर्यावरण के अनुकूल एवं प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के अनुरूप बनाने के लिए इको टूरिज्म को प्रोत्साहित करना।
  • पर्यटकों को उनकी मूल अभिरूचि एवं आर्थिक क्षमता के अनुरूप सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्रों की सहभागिता बढ़ाना।
  • पर्यटन स्थलों का राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक प्रचार-प्रसार करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग करना
  • उत्तराखण्ड को पर्यटन प्रदेश के रूप में विकसित करना तथा यहाँ की सांस्कृतिक ‘विविधताओं एवं सम्भावनाओं को उजागर करना ।
  • पर्यटन हेतु विभिन्न स्रोतों से पूँजी निवेश में वृद्धि का प्रयास करना। मनोरंजन पर्यटन के साथ-साथ संस्थागत एवं साहसिक पर्यटन का विकास करना।
  • पर्यटन के विकास हेतु एक अधिनियम द्वारा ‘उत्तराखण्ड पर्यटन विकास बोर्ड’ का गठन किया गया है।
  • गढ़वाल व कुमाऊँ मण्डल विकास निगमों में पर्यटन विकास के लिए समन्वय स्थापित किया जाएगा।
  • तीर्थ यात्रियों को पर्यटकों के रूप में आकर्षित करने के लिए प्रबन्धन व्यवस्था में सुधार करना तथा तीर्थाटन एवं पर्यटन का समेकित विकास करना ।
  • पर्यटकों की सुविधा के लिए सड़क परिवहन के साथ-साथ रेल एवं वायु परिवहन कीसुविधा उपलब्ध कराना।
  • पर्यटन क्षेत्रों में स्वरोजगार के उद्देश्य से उत्तरांचल पर्यटन विकास योजना’ कोकार्यान्वित करना।

राज्य में पर्यटन के विभिन्न क्षेत्र –

उत्तराखण्ड में तीर्थाटन, पर्यटन की प्रमुख विधा हैं। इसके अतिरिक्त सांस्कृतिक, नैसर्गिक, साहसिक, वन्यजन्तु, इको टूरिज्म, मनोरंजन (आमोद-प्रमोद) आदि अनेक विधाओं के लिए संसाधन उपलब्ध है।

तीर्थाटन –

उत्तराखण्ड में यत्र-तत्र विभिन्न धर्मों के तीर्थ-स्थल विद्यमान हैं, जिनमें से बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री, गंगोत्री, कुम्भ क्षेत्र हरिद्वार, हेमकुण्ड साहिब, नानकमत्ता, मीठा-रीठा साहिब, पीरान-कलियर, पुण्यगिरी आदि विश्व प्रसिद्ध धार्मिक स्थल हैं। प्रदेश में अनेक महत्त्वपूर्ण यात्राओं, जिनमें से नन्दा देवी राजजात तथा कैलाश मानसरोवर यात्रा सर्वाधिक प्रसिद्ध है, का आयोजन भी किया जाता है। इसके अतिरिक्त अनेक अन्य तीर्थ विद्यमान है। यथा पंचबद्री, पंचकेदार, पंचप्रयाग, पाताल भुवनेश्वर आदि जिनका विकास वांछित रूप से होना शेष है।

सांस्कृतिक पर्यटन –

उत्तराखण्ड में अनेक विश्व प्रसिद्ध सांस्कृतिक गतिविधियों के साथ ही स्थानीय महत्त्व के अनेक मेले एवं त्यौहार तथा झण्डा मेला (देहरादून), सुरकण्डा देवी मेला (टिहरी), माघ मेला (उत्तरकाशी), नन्दा देवी मेला (नैनीताल), चैती मेला (ऊधमसिंह नगर), पूर्णागिरि मेला (चम्पावत), पीरान-कलियर मेला (हरिद्वार), जौलजीवी मेला (पिथौरागढ़), उत्तरायणी मेला (बागेश्वर), आदि यहाँ के सांस्कृतिक पर्यटन की विविधताओं एवं सम्भावनाओं को उजागर करते हैं।

उत्तराखण्ड पर्यटन विकास बोर्ड –

यह विकास बोर्ड देश में अपनी तरह का पहला विकास परिषद् है, जिसका गठन ‘अधिनियम के तहत किया गया है। यह परिषद् पर्यटन से सम्बन्धित अवस्थापना सुविधाओं के सुदृद्दीकरण, नीति निर्धारण एवं पूँजी निवेश के आमन्त्रण तथा अनुमति आदि के कार्य करता है।

पर्यटन रोजगार योजना –

स्थानीय लोगों को पर्यटन की गतिविधियों से जोड़ने के लिए एवं रोजगार के अवसर सृजित करने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने 1 जून, 2002 से वीरचन्द्र सिंह गढ़वाली योजना आरम्भ की है।

राज्य में पर्यटन के विकास हेतु मूलभूत अवस्थापना सुविधाओं का विस्तार एवं सुदृढ़ीकरण –

पर्यटन विकास हेतु उच्च गुणवत्ता की मूलभूत पर्यटन अवस्थापना सुविधाओं का विस्तार, विकास एवं सुदृढीकरण होना आवश्यक है। ताकि पर्यटकों को उनकी आवश्यकता अनुसार उच्चकोटि की तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की सुविधाएँ सुलभ हो सकें। विदेशी पर्यटक तथा अप्रवासी भारतीयों की सुविधा हेतु प्रत्येक जनपद मुख्यालय पर स्थित बैंकों में विदेशी मुद्रा विनिमय की सुविधा भी सुलभ कराई जानी आवश्यक है।

वर्तमान में मुख्यतः ग्रीष्मकाल तक ही उत्तराखण्ड में पर्यटन है। अतः शीतकाल में पर्यटन को बढ़ावा दिए जाने हेतु प्रयास किए जा रहे हैं। इस हेतु वाटर स्पोर्ट्स, ऐरो स्पोर्ट्स, विण्टर टैकिंग शीतकालीन क्रीड़ा (स्कीइंग, आइस स्केटिंग, आइस हाकी) तथा सामान्य रूप से स्वच्छ पर्यावरण में साफ आसमान एवं धूप के आकर्षण आदि विधाओं के विकास एवं प्रयास किए जा रहे हैं।

पर्यटकों को उनकी मूल अभिरूचि, आकांक्षाओं एवं आर्थिक क्षमता के अनुरूप समुचित सुविधाएँ उपलब्ध कराए जाने के उद्देश्य से निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्रों की सहभागिता से विभिन्न पर्यटक स्थलों में सुनियोजित ढंग से सुविधाएँ विकसित किया जाना आवश्यक है।

अलग-अलग पर्यटन विधाओं के लिए उनकी विशेषताओं तथा उनमें आकर्षित होने वाले पर्यटक समूहों की आवश्यकताओं को देखते हुए, समेकित विकास योजनाएँ बनाई जानी होंगी। इसके अतिरिक्त वर्तमान में विकसित पर्यटक स्थलों पर स्वच्छता एवं अन्य पर्यटक सुविधाओं के सम्बन्ध में कमियों को चिह्नित कर सुनियोजित ढंग से उनकी पूर्ति किया जाना आवश्यक होगा।

नए पर्यटक स्थलों का विकास –

मसूरी तथा नैनीताल के अतिरिक्त उत्तराखण्ड के अन्य अल्पविकसित, किन्तु पर्यटन सम्भावनाओं में युक्त नगरों स्थलों को मुख्य पर्यटन गन्तव्यो (Destinations) के रूप में विकसित किया जाना आवश्यक है। इसी क्रम में नई टिहरी एवं टिहरी बाँध जलाशय, पिथौरागढ़, मुस्यारी, पौड़ी, खिर्स् लैंसडाउन आदि को भी आकर्षक पर्यटन स्थलों के रूप में विकसित किया जाएगा। उत्तराखण्ड राज्य की अन्तर्राष्ट्रीय सीमाएँ नेपाल, तिब्बत, चीन से मिली हैं।

सुरक्षा की दृष्टि से संवेदनशील भू-भाग को छोड़ते हुए भारत सरकार द्वारा विस्तारित की गई इनर लाइन में विदेशियों के लिए कुछ पर्यटन स्थल खोले गए हैं, जिन्हें भारतीय पर्यटकों हेतु खोला जाना आवश्यक है। इसी परिप्रेक्ष्य में कैलाश-मानसरोवर यात्रा की विषमता को देखते हुए इस यात्रा मार्ग को सरलीकृत करने तथा यदि विकल्प के रूप में कोई दूसरा यात्रा मार्ग सम्भव होगा तो उस पर विचार किया जाएगा।

राज्य के प्रमुख पर्यटन स्थल

चम्पावत –

चम्पावत का पर्यटन की दृष्टि से विशिष्ट स्थान है। यहाँ बालेश्वर मन्दिर समूह एवं पुरानी राजधानी के अवशेष स्थित हैं। नागनाथ मन्दिर कुमाऊँनी वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। यहाँ अन्य कई प्राकृतिक, सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक महत्त्व के दर्शनीय स्थल हैं।

गोमुख –

गंगोत्री से गोमुख की दूरी 17 किमी है। इसी गोमुख से गंगा नीचे की ओर बड़े वेग से निकलती है। यह विशुद्ध हिम जल है, जो रिस-रिस कर एकत्र होता है और गोमुख में प्रकट होता है। गोमुख से 2-3 किमी की दूरी पर नन्दनकानन की फूलों की भव्य घाटी है।

कटारमल –

यह स्थान अल्मोड़ा से लगभग 14.4 किमी पश्चिम की ओर स्थित है। अल्मोड़ा से 11.2 किमी कोसी तक सड़क मार्ग से जाने के बाद लगभग 2 किमी पैदल चलना पड़ता है। उत्तराखण्ड का प्रसिद्ध सूर्य मन्दिर यहीं स्थित है। सूर्य की मूर्ति 12वीं सदी की कृति है। शिव-पार्वती, लक्ष्मी-नारायण और नरसिंह आदि की भी मूर्तियाँ हैं।

गढ़वाल विकास निगम का यात्रा कार्यालय व टूरिस्ट गेस्ट हाउस इसी क्षेत्र में है। इसी क्षेत्र में इस्कॉन अन्तर्राष्ट्रीय संस्था द्वारा संचालित श्रीराधा गोविन्द का भव्य मन्दिर है। यहाँ विदेशी पर्यटक बहुत संख्या में आते हैं।

कलिया शरीफ –

हरिद्वार जिले में रुड़की के समीप पौरान कलियर शरीफ स्थित है। यहाँ हजरत साबिर की दरगाह यह स्थान मुसलमानों का पवित्र धार्मिक स्थान है। पूरे देश से ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, अरब आदि देशों से भी श्रद्धालु इस स्थान पर आते हैं और बाबा साबिर की दरगाह पर चादर चढ़ाते हैं। केवल मुस्लिम ही नहीं, बल्कि हिन्दू भी इस दरगाह पर आकर अपनी मुरादें माँगते हैं। यह स्थान हिन्दू मुस्लिम एकता एवं भाईचारे का प्रतीक है।

मसूरी –

देहरादून से 35 किमी दूर 6,500 फीट की ऊँचाई पर बसी मसूरी उत्तराखण्ड की सर्वोत्तम पर्वतीय बस्ती है। इसे ‘पर्वतीय स्थानों की रानी’ कहा जाता है। यहाँ पर्यटकों की सुविधा के लिए रज्जुमार्ग भी है। कैम्पटी फाल यहाँ का विशेष आकर्षण है।

यह नगर अपने सौन्दर्य और प्राकृतिक छटा के लिए प्रसिद्ध है। गर्मियों में मसूरी का मौसम सुन्दर और आकर्षक होता है। यहाँ देश-विदेश के हजारों सैलानी गर्मी के मौसम में ठहरने के लिए और शरद्काल में हिमपात का आनन्द लेने के लिए आते हैं।

मसूरी में लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी स्थित है, जहाँ भारतीय सिविल सेवा (IAS) के अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके अतिरिक्त कई राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के कॉलेज और स्कूल भी हैं। मसूरी से हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों स्पष्ट दिखाई देती हैं। गनहिल चोटी और लाल टिब्बा से चीन की सीमा और बर्फीला हिमालय साफ-साफ दिखाई देता है।

दुर्लभ विंटर लाइन का जादू –

पर्वतों की रानी मसूरी की नैसर्गिक सुन्दरता में चार चाँद लगाने का कार्य दुर्लभतम ‘विंटर लाइन’ करती है। प्रकृति की यह अद्भुत घटना आमतौर पर दिसम्बर-जनवरी माह में नजर आती है। ‘विंटर लाइन’ वास्तव में एक विशेष प्रकार का नेचुरल फिनोमिना है, जिसके तहत पश्चिम दिशा में अस्त हो रहे सूर्य लालिमा एक लाल रंग की कई किलोमीटर लम्बी (क्षैतिज) रेखा की भाँति दिखाई पड़ती है।

रानीखेत –

इस पर्वतीय नगरी तक अल्मोड़ा और नैनीताल से भी आसानी से पहुॅचा जा सकता है। यहाँ अनेक सुन्दर स्थल, चीड़ के वन और फलों के बाग हैं। चौबटिया, जहाँ राज्य सरकार के फलों के बाग हैं, यहाँ से अधिक दूर नहीं है। यहाँ का गोल्फ कोर्स भी प्रसिद्ध है। यहाँ एक रज्जुमार्ग भी है।

रानीखेत कुमाऊ गढ़वाल
रानीखेत कैसे पहुंचे?

इस मनोरम स्थल से बहुत समय पहले कुमाऊँ के एक की रानी रही। उसे यह स्थान इतना मनोरम लगा कि उसने यहीं पर डेरा डाल दिया जहाँ पर आजकल रानीखेत क्लब है उस समय वह एक खेत मा रानीखेत नाम उसी राती के के नाम पर पड़ा। वास्तव में, यह नगर हिल स्टेशनों की रानी है। यहाँ मनकामेश्वर मन्दिर हनुमान मन्दिर तथा झूला देवी मन्दिर पर्यटकों को करते हैं। रानीखेत की नैसर्गिक सुन्दरता विश्वविख्यात है। इस नगर की खोज अंग्रेजों ने ही की थी। 183 ई. में इस नगर की स्थापना हुई थी। तत्कालीन वायसराय (1869-72) को अत्यधिक प्रिय था।

ताड़ीखेत –

यह स्थान रानीखेत से 8 किलोमीटेर की दूरी पर स्थित है। ताड़ीखेत का अनुपम सौन्दर्य पर्यटकों को बरबस आकृष्ट कर लेता है। वर्ष 1928 में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने यहाँ तीन दिन बिताए। उस समय महात्मा गाँधी ने पूरे तीन सप्ताह कुमाऊँ की पहाड़ियों में बिताए थे। यहाँ से जाने के बाद ‘यंग इण्डिया’ के 11 जुलाई, 1929 के अंक में उन्होंने लिखा था कि मुद्र आश्चर्य है कि ऐसी स्वास्थ्यवर्द्धक पहाड़ियों के होते हुए हमारे के लोग यूरोप में स्वास्थ्य लाभ के लिए क्यों जाते हैं?” ताड़ीखेत में महात्मा गाँधी की कुटिया है। इस कुटिया को प्रैन विद्यालय के छात्रों ने अपने हाथों से बनाया था। इसी कुटिया के बरामदे में गाँधीजी ने प्रवास किया था।

मनीला –

मनीला का नैसर्गिक सौन्दर्य प्रकृति प्रेमी सैलानियों के लिए आकर्षण का केन्द्र है। लीला से हिमालय का दृश्य बहुत ही आकर्षक लगता है। सामने का दृश्य देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो हिमालय खड़ा होकर अपने पास बुला रहा है। मनीला रानीखेत से 66 किमी दूर समुद्र तल से 2,250 मी की ऊँचाई पर स्थित है। सैलानियों के रहने के लिए यहाँ पर वन विभाग का एक विश्रामगृह है।

कौसानी –

यह स्थान कुमाऊँ की पहाड़ियों में सबसे अधिक आकर्षक और रमणीय है। हिन्दी के छायावादी कवि सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म इसी कौसानी में हुआ था। कौसानी की वास्तविक ख्याति वर्ष 1928 में महात्मा गाँधी द्वारा हुई, जब वे यहाँ 12 दिन तक रहे थेो उन्होंने दर इण्डिया’ में लेख लिखकर कुमाऊँ की पहाड़ियों और विशेषकर कौसानी के अलौकिक सौन्दर्य के विषय में भारत और भारत के बाहर के लोगों का ध्यान आकर्षित किया था।

तब से कोल्तानी में देश-विदेश के हजारों लोग यहाँ की प्राकृतिक छटा को देखने आने लगे कौसानी का मुख्य आकर्षण हिमालय दर्शन है। यहाँ से हिमालय की विशाल श्रृंखला साफ-साफ दिखाई देती है। इस श्रृंखला में चौखम्मा, त्रिशूल, नन्दादेवी, नन्दाकोट, पंचली और की स्मो चोटियों के मनोहारी दर्शन स्पष्ट हो जाते हैं। हिमालय का इतना विस्तार पौड़ी (माइवाल) के अलावा और कहीं से भी नहीं दिखाई देता।

कौसानी का सूर्योदय और सूर्यास्त का दृश्य प्रकृति प्रेमियों को आत्मविभोर कर देता है। स्टेट बंगले से सूर्योदय के दर्शन इतने स्पष्ट और अनुपम होते हैं कि कौसानी में आए हुए लोग रात्रि के अन्तिम पहर से ही इस बंगले के पास एकत्र हो जाते है। कौसानी, कोसी और गरुड़ नदियों के बीच की ढलवाँ पहाड़ी पर समुद्रतल से 1980 मी की ऊँचाई पर बसा है। सीढीनुमा खेतों की सुन्दरता यहाँ के वातावरण को और भी आकर्षक बना देती है।

चकराता –

यहाँ सैन्य छावनी स्थित है। टौस तथा यमुना नदी के बीच स्थित चकराता, देहरादून से 92 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ का सबसे मनोरम ‘टाइगर फाल्स’ नामक झरना है। यहाँ से हिमशिखरों के सुन्दर दृश्य दिखाई पड़ते हैं। देहरादून से बहुत सरलतापूर्वक यहाँ पहुँचा जा सकता है। यह शान्त और स्वास्थ्य के लिए बड़ा लाभकारी स्थान है।

लैंसडाउन –

यह देश का एक बेहतरीन हिल स्टेशन है। समुद्र तल से 1.700 मी की ऊँचाई पर स्थित लैंसडाउन कोटद्वार से 45 किमी दूर स्थित है। इस पर्वतीय नगरी से बद्रीनाथ खण्ड के हिमशिखरों के दृश्य दिखलाई पड़ते हैं। यहाँ भुल्ला ताल स्थित है। यह स्थान ट्रेकिंग के लिए भी प्रसिद्ध है।

अल्मोड़ा –

अल्मोड़ा कुमाऊँ डिवीजन का मुख्यालय है। समुद्रतल से 1.750 मी की ऊँचाई पर बसा यह नगर 14वीं शताब्दी में कत्यूर शासकों द्वारा बसाया गया। 16वीं शताब्दी में यह गोरखा शासकों के अधीन रहा, जिसके बाद अंग्रेजों ने इसे अपने कब्जे में ले लिया। अंग्रेजों ने अल्मोड़ा को एक पर्यटन नगरी के रूप में विकसित किया। अल्मोड़ा में नन्दा देवी मन्दिर, शीतला देवी मन्दिर तथा माल रोड आदि आकर्षक स्थल हैं।

पिण्डारी ग्लेशियर –

बागेश्वर की नैसर्गिक छटा में वृद्धि करने वाला पिण्डारी ग्लेशियर का अपना विशिष्ट स्थान है। सम्पूर्ण प्राकृतिक छटा यहाँ हँसती प्रतीत होती है। यहाँ नाना प्रकार के वृक्ष छाया देते हैं और फल-फूलों से लदे रहते हैं। यहाँ नाना प्रकार के पशु-पक्षी स्वच्छन्द होकर विचरण करते हैं।

पिण्डारी ग्लेशियर नन्दादेवी पर्वतश्रेणी और नन्दाकोट चोटी के पाद-प्रदेश में समुद्र तल र 3,853 मी से 4,652 मी तक की ऊंचाई पर 3 3 किमी लम्बाई और 1.5 किमी चौड़ाई में स्थित है। यहाँ जाने का मार्ग अत्यन्त सुगम है। इसलिए देश तथा विदेश के अनेक पर्यटक और पदारोही प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में यहाँ पहुँचते हैं। इस ग्लेशियर में पहुँचने के लिए। मई से जून और सितम्बर से अक्टूबर तक का समय सबसे उत्तम रहता है।

काठगोदाम –

काठगोदाम गोला नदी के दाएँ तट पर बसा एक छोटा कस्बा है। इसके उत्तर में बसा हल्द्वानी # किसी एवं दक्षिण में बसा नैनीताल 35 किमी दूर है। इस कस्बे में अनेक स्कूल एवं कॉलेज है। राल, तारपीन, मधुमक्खी पेटिका एवं सामान रखने के डिब्बे यहाँ से निर्यात होने वाली मुख्य वस्तुएँ हैं।

खटीमा –

खटीमा, तराई एवं पीलीभीत टनकपुर सड़कों के जंक्शन पर नैनीताल से लगभग 138 किमी दूर स्थित है। यहाँ का क्षेत्रफल 8 4 वर्ग किमी है। यह उत्तर-पूर्वी रेलवे के मैलानी-पीलीभीत सेक्शन का रेलवे स्टेशन भी है। खटीमा इसी नाम के विकासखण्ड का मुख्यालय भी है।

यहाँ बीज भण्डार, पशु चिकित्सालय, शीतगृह, कृत्रिम गर्भाधान केन्द्र, एलोपैथिक औषधालय एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र हैं। यहाँ एक बस स्टेशन है। हैरो-हल एवं कई अन्य छोटे-छोटे खेती करने के औजार बनाए जाते हैं। खटीमा वन सम्पदा एवं गल्ला का निर्यात करने का एक मुख्य केन्द्र है। यहाँ पर कई चावल मिलें एवं आटा मिलें हैं।

खुरपाताल –

खुरपाताल (झील) के पास बसे हुए गाँव का नाम खुरपाताल है। यह गाँव 29°22 उत्तर अक्षांश एवं 79°26′ पूर्व देशान्तर के मध्य में कोटाई माला एवं छखाता पट्टियों की सीमाओं के बीच समुद्र सतह से 1.635 मी की ऊँचाई पर बसा है। यह गाँव नैनीताल-कालादूँगी मार्ग पर नैनीताल से लगभग 8 किमी दूर है। यहाँ की जलवायु अस्वास्थ्यकर होने के कारण 1881 ई. में सैनिक छावनी को यहाँ से हटा दिया गया था। यह गाँव भीमताल विकासखण्ड के अन्तर्गत है। यहाँ पर कई बीजगोदाम है।

नैनीताल –

नैनीताल, जनपद का मुख्यालय 29°30 उत्तर अक्षांश एवं 7027* पूर्व देशान्तर के मध्य काठगोदाम से 35 किमी की दूरी पर घाटी में स्थित है। इस घाटी के ओर नागर पर्वत की श्रेणी पूर्व से पश्चिम तक फैली हुई है, उत्तर में नैनीचोटी (2.611 मी ऊँची), पश्चिम में देवपथ (2.414 मी ऊँचा) की बीहड़ पहाड़ियाँ तथा दक्षिण में अयार पथ (2.277 मी ऊँचा) की जो पहाड़ी है, वह पूर्व की ओर झुकी हुई है।

इन दोनों पहाड़ियों के बीच के मध्यवर्ती स्थान बड़ी-बड़ी अलग-अलग पड़ी चट्टानों का ढेर है। यहाँ पर मसूरी का चूना-पत्थर है तथा हर आकृति एवं आकार के शिलाखण्ड भी हैं। पूर्व की ओर झील के अधिशेष जल के निकास की भी व्यवस्था है तथा यह जल बलिया नदी का जो रानीबाग के निकट शोला में मिलती है, मुख्य स्रोत है। घाटी के पश्चिम छोर पर पहाड़ियों का मलवा है।

नैनीताल नगर जो घाटी का पूर्वी भाग है, नैनीताल की झील के नाम पर ही है। यह झील 7,433 मी लम्बी एवं 463 मी चौड़ी है तथा समुद्र सतह से 1,933 मी ऊँचाई पर है। यह झील त्रिऋषि सरोवर (अत्रि, पुलस्त्य एवं पुलाहा ऋषियों की झील) के नाम से भी जानी जाती है। नैनादेवी जिनका मन्दिर इसके तट पर है, के नाम से इसका नाम नैनीताल हुआ। यहाँ लोग • नैनादेवी के दर्शन करने आते हैं तथा श्रद्धा प्रकट करते हैं। विशेष अवसरों पर बहुत बड़ी संख्या में श्रद्धालु झील में स्नान करने हेतु आते हैं।

मार्च, 1839 में बेटन एवं बेरन यहाँ आए एवं 1841 ई. में इस झील की खोज का प्रचार हुआ। एक वर्ष पश्चात् 1842 ई. में बेटन ने बारह बंगलों का निर्माण कराया तथा कुमाऊँ मण्डल के आयुक्त लशिंगटन ने एक छोटे घर का निर्माण प्रारम्भ किया। 1856 ई. तक नैनीताल एक प्रमुख पर्वतीय स्थल हो गया। तदुपरान्त यह राज्य सरकार की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनी। अयार पथ के दक्षिण-पूर्व में वर्ष 1960 में वर्तमान राजभवन बनकर तैयार हुआ।

किच्छा –

किच्छा ऊधमसिंह नगर की तहसील है। बरेली से नैनीताल जाने वाले मार्ग पर मध्य नैनीताल से लगभग 96 किमी की दूरी पर है। इसका क्षेत्रफल 4 वर्ग किमी है। यहाँ पर कई स्कूल एवं कॉलेज हैं। जिला परिषद् द्वारा चालित एक संगीत भवन और विश्राम गृह हैं। किच्छा में एक बहुत बड़ी विकसित मण्डी है। यहाँ पर अनेक कृषि फार्म, चावल, तेल एवं आटा की कई मिलें हैं।

कोटा बाघ –

कोटा बाघ एक छोटा गाँव है। यह इकहारी से रामनगर जाने वाली सड़क पर स्थित है। चाँद राजाओं एवं गोरखों के राज्य काल में यह एक महत्त्वपूर्ण स्थान था। यह कालाढूंगी से लगभग 16 किमी की दूरी पर है। यहाँ पर दबका नदी पहाड़ कोटाह से निकलकर एक सुन्दर संकरी घाटी में होकर बहती है।

यहाँ पर प्राचीन किले का खण्डहर है तथा नदी की धारा को एक कगार द्वारा मोड़ दिया गया है। इससे थोड़ी दूर पर खरपतवार से आच्छादित पर्वत के नीचे श्रेणी पर नदी से 60 मी ऊँचाई पर देवीपुर का मन्दिर है। यहाँ के प्रमुख उद्योग खाने योग्य तेल, पेरना एवं गुड़ बनाना है।

लालकुआँ –

लालकुआँ, बरेली-अल्मोड़ा मार्ग पर नैनीताल से लगभग 156 किमी एवं हल्द्वानी से 16 किमी दूर 29°4′ उत्तर अक्षांश एवं 79°30 पूर्व देशान्तर में उत्तर-पूर्व रेलवे लाइन के बरेली-काठगोदाम खण्ड का प्रमुख रेलवे जंक्शन है। पूर्व में यह एक साधारण स्थल था. परन्तु वर्ष 1978 में यह टाउन एरिया बना दिया गया। यहाँ का क्षेत्रफल 4.25 वर्ग किमी है।

यह रेत-बजरी एवं काष्ठ उद्योग हेतु प्रसिद्ध है। यहाँ से बुरादा एवं पत्थर का निर्यात तथा ईंट, सीमेण्ट, चूना का आयात किया जाता है। यह उद्योग केन्द्र के रूप में भी प्रसिद्ध है। यहाँ पर सेंचुरी, पल्प तथा कागज बनाने का कारखाना भी है।

मलवा ताल –

मलवा ताल एक बड़ी तथा विषम आकृति की झील है, जो 29°20 उत्तर अक्षांश एवं 79 39 पूर्व देशान्तर में छब्बीस डुमोला पट्टी की पूर्वी सीमा पर स्थित है। यह ताल भीमताल से 18 किमी एवं नैनीताल से 35 किमी दूरी पर है तथा समुद्र सतह से इसकी ऊँचाई 700 मी है। यहाँ पहुँचने के लिए पहले भीमताल जाना पड़ता है वहाँ से उत्तर की ओर एक सड़क चढ़ाई द्वारा चोटी पर जाती है।

शिखर से कुछ किमी की दूरी पर इस सड़क पर एक तीव्र मोड़ तथा बड़ी ढलान इस झील तक है। इसकी लम्बाई 1,365 मी, चौड़ाई 254 मी तथा क्षेत्रफल 47 हेक्टेयर है। इस झील के किनारे ऊँचे ऊँचे पहाड़ हैं। भावर क्षेत्र की सिंचाई हेतु हेनरी रमजे ने एक बाँध के निर्माण का निर्णय लिया था, परन्तु यह फलीभूत न हो सका। झील का पानी स्वच्छ एवं नीले रंग का है, जो केवल वर्षा ऋतु में भारी मात्रा में गाद आने से मटमैला एवं गन्दा हो जाता है। यह झील मछलियों से परिपूर्ण है तथा मछुआरों को अपनी ओर आकर्षित करती है।

चौबटिया –

रानीखेत से चौबटिया 10 किमी की दूरी पर स्थित है। चौबटिया में सरकारी सेबों का बाग है। यहाँ के सेब अति सुन्दर और रसीले होते हैं। यहाँ पर फलों का एक शोध केन्द्र है। इस शोध केन्द्र में विविध प्रकार के फलों पर शोध किया जाता है। यहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य और फलों के बाग को देखने हजारों लोग आते हैं। चौबटिया समुद्र तल से 2,116 मी की ऊँचाई पर बसा हुआ है, जो अत्यन्त ही मनोरम है।

चौबटिया से 3 किमी पैदल चलकर भालू बाँध आ जाता है।यहाँ पर एक कृत्रिम सरोवर भी बनाया गया है। इसी बाँध से रानीखेत के लिए पेयजल उपलब्ध कराया जाता है। भालू बाँध एक पिकनिक स्थल है। बहुत-से पर्यटक यहाँ की प्राकृतिक छटा को निहारने के लिए आते हैं।

मुक्तेश्वर –

इसे महेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। यह महकरी विच्छली की पश्चिमी सीमा पर पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। पूर्व में यह स्थान प्राचीन शिवमन्दिर एवं एक या दो स्थानीय देवी देवताओं के मन्दिर हेतु जाना जाता था। शिव मन्दिर के नीचे की चट्टान में कुछ चिह्न अंकित हैं।

इस विषय में यह मान्यता है कि ये चिह्न किसी देवता की सेना के हाथियों, घोड़ों एवं ऊँटों के पद-चिह्न है, जिसका विरोध यहाँ के स्थानीय देवताओं द्वारा किया गया था। बाद में स्थानीय देवता को अपने कृत्य हेतु अपराधी ठहराए जाने की अपेक्षा कठोर दण्ड से मुक्ति मिल गई, तब से यह स्थान मुक्तेश्वर के नाम से जाना जाने लगा।

रानीबाग –

रानीबाग बलिया नदी के तट पर हल्द्वानी से 6 किमी की दूरी पर स्थित है। इसका क्षेत्रफल 82. 15 हेक्टेयर है। यहाँ एच एम टी (Hindustan Machine Tools) का कारखाना स्थित है। यहाँ पर अस्पताल एवं महर्षि महेश योगी द्वारा स्थापित महर्षि विद्या मन्दिर है।

सितारगंज –

सितारगंज टनकपुर से काशीपुर जाने वाले मार्ग पर स्थित है। यह खटीमा से 29 किमी,पीलीभीत से 35 किमी दूर है। यह विकासखण्ड एवं तहसील का मुख्यालय है। इस टाउन एरिया का क्षेत्रफल 2 वर्ग किमी है।

श्रीनगर –

देवप्रयाग से भागीरथी के पुल पार करने के पश्चात् अलकनन्दा के दाहिने किनारे नदी घाटी का मनोरम नैसर्गिक क्षेत्र है। कीर्तिनगर के पास अलकनन्दा का पुल पार करने पर गढ़वाल राज्य की अति प्राचीन राजधानी श्रीनगर है। श्रीनगर में श्रीयन्त्र निर्मित है। कहा जाता है कि श्रीराम ने शिव की आराधना यहीं की थी। यहाँ का कमलेश्वर मन्दिर बहुत प्रसिद्ध है। यहाँ पर्यटन विभाग का रेस्ट हाउस है। पर्वतीय कोमल काष्ट का एक सुन्दर उद्योग केंन्द्र भी यहाँ स्थित है।

कलियासौड़ –

श्रीनगर से आगे 11 किमी दूर अलकनन्दा के बाएँ तट पर कलियासौड़ नामक विलक्षण सिद्धपीठ स्थित है। यहीं सिद्धपीठ धारीदेवी है। यहाँ पर भगवती की बहुत सुन्दर करालवदना काली मूर्ति है।

भिवाली –

मिवाली नैनीताल से 11 किमी दूर अल्मोड़ा-नैनीताल मार्ग पर स्थित है। इस स्थान की ऊँचाई समुद्र तल से लगभग 1,786 भी है। यहाँ की जलवायु बहुत स्वास्थ्यवर्द्धक एवं चारों ओर का वातावरण बहुत रमणीय है। यहाँ देवदार के वृक्ष बहुत पाए जाते हैं। यह कस्बा पहाड़ी फलो का निर्यात केन्द्र है।

धिकौली –

ग्राम कोसी नदी के दाएँ तट पर स्थित है। यह ग्राम हल्द्वानी से उत्तर-पश्चिम में एवं नैनीताल से पश्चिम में लगभग 96 किमी की दूरी पर रानीखेत-रामनगर राज्य मार्ग पर बसा हुआ है। ढाल पर बसा होने के कारण इसकी साम्यता भाबर में स्थित ग्रामों की अपेक्षा पहाड़ों के ग्रामों से है।

ग्राम के पश्चिम एवं अन्य स्थलों पर शिलाओं के ढेर लटकते हुए से प्रतीत होते हैं, जिनके बीच में तंग घाटियाँ हैं। शिलाओं के कुछ मीटर नीचे प्राचीन भवनों के अवशेष प्राप्त हुए है। इस क्षेत्र में नक्काशीदार स्तम्भ, शीर्ष गोलाकार फलक, पशुओं की प्रतिमाएँ तथा अन्य सुन्दर कलाकृतियों प्राप्त हुई हैं।

जसपुर –

जसपुर नगर काशीपुर के पश्चिम में 15 किमी एवं नैनीताल से 151 किमी दूर है। इस नगर में सूती कपड़ा, इमारती लकड़ी एवं गन्ने का व्यापार होता है। इस नगर के कई जुलाहे परिवार सूती कपड़ों का उत्पादन करते हैं। ये कपड़े पहाड़ी महिलाओं में बहुत लोकप्रिय है। जसपुर की सूती कालीने पास के जिलों में प्रख्यात है। यहाँ सूती कपड़ों की रंगाई एवं ऊन पर छपाई की जाती है।

कैलाश –

मालवाताल के दक्षिण की ओर नैनीताल से लगभग 40 किमी की दूरी पर समुद्र तल से 1.794 मी की ऊँचाई पर कैलाश स्थित है। कैलाश की आकृति शंक्वाकार होने के कारण यह महादेव का लिंग कहलाता है। कहा जाता है कि यह तिब्बत में स्थित कैलाश के सदृश है और यह पर्वत चोटी बहुत पवित्र मानी जाती है। इसकी चोटी पर एक प्राचीन मन्दिर है। नैनीताल से यहाँ आने का साधन मानाघेर, ओखलडुंगी तथा खच्चर मार्ग द्वारा है। अक्टूबर के अन्त में यहाँ महादेव एवं ज्वाला देवी के सम्मान में तीन दिन तक मेला लगता है।

बाजपुर –

बाजपुर कस्बा नैनीताल से 128 किमी दूर दक्षिण-पश्चिम में है। बाज बहादुरचन्द्र कुमाऊँ के शासक (1638-1678) द्वारा बाजपुर स्थापित किया गया था। यह स्थान प्रमुख गल्ला उत्पादन केन्द्र के रूप में भी प्रसिद्ध है।

रुद्रपुर –

इस नगर का नाम अब ऊधमसिंह नगर कर दिया गया है, जो उत्तराखण्ड का जनपद है। यह किच्छा से 13 किमी एवं नैनीताल से 83 किमी दूर है। इस नगर का नाम कुमाऊँ के राजा रुद्रचन्द्र के नाम पर रखा गया था, जिसने इसकी स्थापना 1588 ई. में की थी तथा 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ तक यह तराई क्षेत्र की राजधानी रही।

टनकपुर –

टनकपुर एक अत्यन्त मनोरम स्थल है, जो शारदा नदी के बाएँ तट पर नैनीताल से लगभग 24 किमी दूर है। यहाँ से इसके उत्तर में अल्मोड़ा तथा दक्षिण में स्थित पीलीभीत के लिए सड़क मार्ग है। इस नगर की स्थापना 1880 ई. में हुई थी। यह नदी से 12 मी की ऊँचाई पर शुष्क स्थान पर बसा है।

टनकपुर में तराशे हुए सुन्दर पत्थरों की दुकानें हैं। यहाँ पर प्रचुर परिमाण में इमारती लकड़ी, पशुओं की खाले, कत्था, शहद तथा वन सम्बन्धी छोटे-छोटे उत्पाद निर्यात किए जाते हैं।

कालाढूंगी –

कालाढूंगी के नाम से जाना जाने वाला यह कस्बा समुद्र तल से 395 मी ऊँचाई पर नैनीताल- मुरादाबाद मार्ग पर हल्द्वानी से 27 किमी तथा नैनीताल से 26 किमी की दूरी पर स्थित है। यह कस्बा घपलागाँव से 5 किमी फैले हुए भू-स्लावन द्वारा निर्मित एक बहुत बड़े तालुज के अधोभाग में बसा हुआ है। यहाँ की प्राकृतिक छटा अद्वितीय है।

नानकमत्ता –

नानकमत्ता खटीमा-सितारगंज मार्ग पर स्थित है। यह खटीमा के पश्चिम में लगभग 76 किमी एवं सितारगंज के पूर्व में 10 किमी की दूरी पर है। इस गाँव का नाम गुरुनानक के नाम पर पड़ा है, जिनको समर्पित एक गुरुद्वारा भी हैं, जिसका निर्माण औरंगजेब के शासनकाल में हुआ था। कहा जाता है कि गुरुनानक यहाँ आकर रहे थे तथा कुछ दिन मनन-चिन्तन में व्यतीत किए थे। यहाँ एक सरोवर है, जिसे नानक जलाशय कहते हैं।

पन्तनगर –

पन्तनगर रुद्रपुर के समीप किच्छा से 14 किमी और नैनीताल से 70 किमी दूर है। यह नगर देश के महान् स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी पण्डित गोविन्द बल्लभ पन्त की स्मृति में प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू द्वारा समर्पित किया गया। पण्डित गोविन्द बल्लभ पन्त उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमन्त्री थे। नगर के नाम पर रेलवे स्टेशन का भी नाम है। सम्पूर्ण देश में पन्तनगर की प्रसिद्धि का कारण यहाँ स्थापित गोविन्द बल्लभ पन्त कृषि विश्वविद्यालय है।

रामगढ़ –

रामगढ़ भोवाली से मुक्तेश्वर जाने वाले मार्ग पर समुद्र तल से 1,790 मी ऊँचाई पर स्थित है। यह नैनीताल से 26 किमी की दूरी पर है। यहाँ के सबसे ऊँचे स्थल से पूर्व से पश्चिम तक फैली पर्वत श्रेणियाँ मनोरम दृश्य प्रस्तुत करती हैं। यह स्थान सेब, आडू एवं खुबानी की पैदावार के लिए प्रसिद्ध है।

उत्तराखंड में पर्वतारोहण –

उत्तराखंड में आधुनिक पर्वतारोहण का प्रारम्भ वर्ष 1905 में टीजी लौगस्टाफ के नन्दा देवी अभियान से माना जाता है। इस अभियान में वे केवल 5875 मी ऊँचे दरें तक ही पहुँचने में। उत्तराखण्ड सफल हो सके। विश्व में पर्वतारोही दलों का सर्वाधिक पंजीकरण उत्तराखण्ड हिमालय में देखने को मिलता है।

पर्वतारोहण संस्थान –

हिमालयन संस्थान भारत में पर्वतारोहण को लोकप्रिय बनाने के लिए वर्ष 1954 में “हिमालयन माउण्टेनियरिंग इंस्टीट्यूट’ की दार्जिलिंग में स्थापना की गई। इसी क्रम में वर्ष 1961 में नई दिल्ली में भारतीय पर्वतारोहण फाउण्डेशन’ की भी स्थापना की गई।

नेहरू पर्वतारोहण संस्थान, उत्तरकाशी युवाओं में पर्वतीय वनस्पतियों एवं जीव-जन्तुओं का • ज्ञान कराने तथा साहसिक भावना बढ़ाने के उद्देश्य से वर्ष 1965 में उत्तरकाशी में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान की स्थापना की गई। इस संस्थान का मूल दर्शन ‘साहसे श्रीप्रतिवसति है।

कुमाऊ मण्डल विकास निगम व गढ़वाल मण्डल –

विकास निगम इन संस्थाओं द्वारा भी पर्वतारोहण को प्रोत्साहित करने का कार्य किया जाता है। इनके द्वारा पर्वतारोहण में काम आने वाली सामग्री प्रशिक्षित गाइड व अन्य जानकारियाँ उपलब्ध कराई जाती हैं। गढ़वाल मण्डल विकास निगम द्वारा औली में स्कीइंग का प्रशिक्षण भी दिया जाता है।

फूलों की विभिन्न घाटियाँ –

भ्यूण्डार की फूलों की घाटी –

इस नयनाभिराम फूलों की घाटी का परिचय सर्वप्रथम वर्ष 1931 में प्रसिद्ध पर्वतारोही फ्रैंक स्मिथ ने विश्व को कराया। स्मिथ ने इस रमणीक स्थल पर एक पुस्तक ‘द वैली ऑफ फ्लॉवर्स’ लिखी। इंग्लैण्ड के ‘क्यू बोटैनिकल गार्डन’ की ओर से मैडम जॉन मारग्रेट लेक (1939) इन फूलों की घाटी में पहुँची और यहीं पर 4 जुलाई, 1939 को फूलों की गोद में सदा के लिए सो गई।

भ्यूण्डार की फूलों की घाटी महाभारत काल की है। जब पाण्डव पाण्डुकेश्वर में निवास क रहे थे उसी दौरान एक दिन जब द्रौपदी अलकनन्दा और लक्ष्मणगंगा के संगम पर स्नान क रही थीं, तभी लक्ष्मणगंगा की ओर से आते हुए सुगन्धित कमल को देखकर मन्त्रमुग्ध हो गई द्रौपदी ने भीम से इन ताजे फूलों को लाने के लिए अनुरोध किया था। बहुत दूर जाने पर य फूलों की घाटी दिखाई दी थी। भ्यूण्डार की फूलों की घाटी तक पहुँचने के लि ऋषिकेश-बद्रीनाथ मार्ग से पहुँचा जा सकता है।

रुद्र हिमालय की फूल घाटी –

रुद्रनाथ (14,000 फीट) पंचकेदार (केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, कल्पेश्वर तथा मदमहेश्वर) में से एक केदार है। रुद्रनाथ जाने के लिए अभी कोई मार्ग नहीं है। कच्चे रास्ते से जाना पड़ता है। रुद्रनाथ जाने के लिए गोपेश्वर (चमोली) से दो मार्ग-एक गोपेश्वर से गंगोल गाँव होकर (17 मील) तथा दूसरा गोपेश्वर से सुखताल होकर (23 मील) रुद्रनाथ जाने के लिए बेमरू गाँव अन्तिम गाँव है।

बेमरू गाँव से 10,000 फीट की ऊँचाई से रुद्रहिमालय की फूल घाटी शुरू होती है, जो 20 मील में विस्तृत है। मखमली दूब की बुग्याल पर अनेक प्रकार के पुष्प खिलते है। इस फूल घाटी में जगह-जगह पर जल के सोते (चोया) मिलते है। सारे गढ़वाल हिमालय में इससे अधिक फूलों वाली दूसरी घाटी नहीं है।

हर की दून की फूल घाटी –

उत्तरकाशी जिले के रवाई परगने के पट्टी पंचगाई स्थित फतेह पर्वत में मनोहारिणी फूल घाटी हर की दून 7-8 मील के विस्तार में फैली हुई अनुपम फूल घाटी है। समुद्र तल से 11,700 फीट की ऊँचाई पर हर की दून ईश्वर की सौन्दर्यमयी अद्भुत घाटी के नाम से विख्यात है। इस घाटी में मखमली हरीदून, असंख्य पुष्प और मूल्यवान औषधियाँ हैं।

माँझी-वन की फूल घाटी –

उत्तरकाशी और हिमाचल प्रदेश की सीमा पर फूलों का सुन्दर माँझी-वन है। समुद्र तल से 16,130 फीट की ऊँचाई पर लम्बा-चौड़ा मीलों तक फैला हुआ माँझी-वन का सुन्दर मैदान है, जिसमें ब्रह्मकमल, लेशरजयान, फेणकमल आदि के फूल खिले रहते हैं। इस वन के लिए मार्ग चकराता हिमालय तथा उत्तरकाशी जिले के भटवाड़ी नामक स्थान से जाता है।

सुक्खी और घराली की फूल घाटियाँ –

उत्तरकाशी से गंगोत्री मोटर मार्ग पर 40 मील की दूरी पर सुक्खी गाँव है। इसी गाँव के ऊपर लगभग तीन मील पर सुक्खी शिखर है। गाँव की सीमा के बाद ही 5 किमी लम्बा और डेढ़ मील चौड़ा फूलों का मैदान शुरू हो जाता है, जिसे नागणीसौड भी कहते हैं। हरे-भरे इस विशाल मैदान में सूरजकमल, विषकण्डार, जंगली गुलाब और अनेक प्रकार के हैं। यहाँ नागराजा देवी तथा कृष्ण रानियों के मन्दिर हैं। फूल खिलते

कुश कल्याण और सहस्रताल की फूल घाटी –

जौराई और कुश कल्याण (सहस्रताल) की फूल घाटियों को 14,500 फीट समुद्र तल से ऊँची हिमालय की चोटी विभाजित करती है। जौराई से 2 मील ऊँचे पहाड़ को पार कर कुरा कल्याण की फूल घाटी में पहुँचा जा सकता है। यहाँ पर विविध प्रकार के पुष्प तथा मखमली भूमि है। इस फूल घाटी का नाम कोटालों की हारी है। कोटालों का अर्थ अप्सराओं से है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यहाँ अधिक देर तक ठहरने पर अप्सराएं मनुष्यों का हरण कर लेती हैं।

पंवालीकाण्ठा की फूल घाटियाँ –

टिहरी जनपद से पंवालीकाण्ठा घुतू होकर और उत्तरकाशी से गंगोत्री होकर पहुँचा जा सकता है। यहाँ पर कई घाटियाँ हैं, जो फल-फूलों से भरी रहती हैं। यहाँ पर औषधियों का अकूत भण्डार है। यह फूल घाटी 15 से 20 मील तक फैली है।

कुँआरी की फूल घाटी –

कुमारी (कुँआरी) हिमवान की पुत्री पार्वती ने अपने आराध्यदेव (शिव) को प्राप्त करने हेतु जिस क्षेत्र में कठिन तप किया, वही यह क्षेत्र कुंआरी फूल घाटी है। पास ही तिब्बत जाने का पास (दर्रा) भी कुँआरी के नाम पर ही कुँआरी पास के नाम से विख्यात है। यहाँ जाने के लिए चमोली से जाया जा सकता है।

आली गुरसों की फूल घाटी –

जोशीमठ से 5 मील पर आली गुरसों की फूल घाटी शुरू हो जाती है। इस फूल घाटी में प्रिमुला के बैंगनी, गहरे लाल रंग के फूल अधिक खिले मिलते हैं। वज्रदन्ती के पीले फूल, आइरिश फूल यहाँ अधिकता से खिलते हैं।

मदमहेश्वर की फूल घाटी –

पंचकेदार (केदारनाथ, तुंगनाथ, कल्पनाथ, मदमहेश्वर और रुद्रनाथ) में मदमहेश्वर का विशिष्ट स्थान है। यह फूल घाटी केदारनाथ मार्ग से अति सर्मींप है। यह फूलों की घाटी 7 किमी लम्बी तथा 3 किमी चौड़ी है। यहाँ के फूलों में लाल तथा नीले रंग की अधिकता रहती है।

कल्पनाथ की फूल घाटी –

कल्पनाथ की फूल घाटी बद्रीनाथ क्षेत्र में है। जोशीमठ के रास्ते में उर्गम गाँव है। इस गाँव से डेढ़ मील पर गुफा के अन्दर कल्पनाथ (शिव) का लिंग है। गुफा के ऊपर पहाड़ है। आमने-सामने फूलों की 3-4 किमी की घाटी है। गुफा के ऊपर भी फूलों का मखमली ढलवाँ मैदान है। यह क्षेत्र अत्यन्त रमणीक है।

बेदनी बुग्याल की फूल घाटी –

बेदनी बुग्याल गढ़वाल का सबसे अधिक आकर्षक क्षेत्र है। इसी क्षेत्र में रूपकुण्ड है, जहाँ फूल घाटियाँ देखने योग्य हैं। बेदनी बुग्याल जाने के लिए ऋषिकेश, कोटद्वार, रामनगर से कर्णप्रयाग होकर जाया जा सकता है। यहाँ पर औषधियों का भण्डार है।

रूपकुण्ड की फूल घाटी –

16,000 फीट की ऊँचाई पर सुविख्यात रूपकुण्ड है। इस कुण्ड के मार्ग में 6-7 किमी की मखमली घास का विशाल मैदान है। इस मैदान में असंख्य प्रकार के फूल खिले रहते हैं। फेणकमल इस क्षेत्र का सबसे सुन्दर फूल है। यह दवा के काम में भी आता है।

ट्रेवल अवार्ड 2011 –

उत्तराखण्ड पर्यटन विभाग को बेस्ट माउण्टेन हिल डेस्टिनेशन इन इण्डिया कुमाऊँ हिल्स श्रेणी के अन्तर्गत सीएनबीसी आवाज ट्रेवल अवार्ड 2011 से सम्मानित किया गया। पर्यटन मन्त्री अमृता रावत ने जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में केन्द्रीय पर्यटन मन्त्री चिरजीवों कोनीडाला के हाथों यह अवार्ड प्राप्त किया।

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