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टिहरी के प्रमुख दर्शनीय स्थल | टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड

टिहरी के प्रमुख दर्शनीय स्थल

टिहरी गढ़वाल की स्थापना कब हुई?

भागीरथी व भिलंगना नदियों के संगम पर स्थित टिहरी नगर, जो कि 29 अक्टूबर, 2005 को टिहरी डैम में विलिन हो गया है, की नींव 30 दिस. 1815 को गढ़वाल नरेश सुदर्श शाह ने टिहरी राज्य की राजधानी के रूप में रखी थी। यह स्थल गणेश प्रयाग, त्रिहरि व धनुषतीर्थ के नाम से जाना जाता था। ऐसा कहा जाता है कि पहले यहाँ घृतगंगा नदी का भी संगम होता था, जो बाद में लुप्त हो गई।

टिहरी के प्रमुख दर्शनीय स्थल
टिहरी के प्रमुख दर्शनीय स्थल

रुद्रप्रयाग जिले का गठन कब हुआ?

देश की स्वतन्त्रता के उपरान्त 1 अगस्त, 1949 को टिहरी गढ़वाल (उत्तराखंड) एक पृथक् जनपद के रूप में गठित हुआ। यह जनपद इससे पूर्व टिहरी रियासत कहलाता था। इस से काटकर 1960 में उत्तरकाशी तथा 1997 में रुद्रप्रयाग जिले बनाये गये थे। पुराना टिहरी समुद्र तल से 770 मीटर की ऊँचाई पर ऋषिकेश से 84 किमी दूर स्थित है। यमनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ एवं बद्रीनाथ के मार्ग में पड़ने वाला यह एक महत्वपूर्ण विश्राम स्थल है।

टिहरी बाँध निर्माण के फलस्वरूप शासन ने टिहरी के विकल्प के रूप में पुरानी टिहरी से 24 किमी दक्षिण, अर्थात ऋषिकेश से 60 किमी. की दूरी पर नई टिहरी नाम से एक नया नगर बसाया और लोगों का पुनर्वास किया। कुछ लोग अन्यत्र (हरिद्वार या देहरादून) भी बसें हैं। टिहरी जनपद का मुख्यालय कुछ वर्ष पर्व तक नरेन्द्र नगर था किन्तु नई टिहरी के निर्माण के बाद सभी कार्यालय यहीं स्थानान्तरित कर दिए गए हैं। नई टिहरी का निर्माण योजनाबद्ध (Master Plan) ढंग से किया गया है। अब यह एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो रहा है।

टिहरी के प्रमुख स्थल इस प्रकार है –

देवप्रयाग संगम –

देवप्रयाग कहाँ पर स्थित है?

देवप्रयाग भागीरथी (सास) और अलकनन्दा (बहु) नदियों के संगम पर समुद्र तल से 472 मी. की ऊँचाई पर ऋषिकेश-बद्रीनाथ मार्ग पर स्थित है। इस नगर के निकट दो झूला पुल एक भागीरथी पर तथा एक अलकनन्दा नदी पर स्थित हैं।

कहा जाता है कि, देवप्रयाग में ही भगवान विष्णु ने राजा बलि से 3 पग धरती दान में मांगी थी। यहाँ पर 2 कुण्ड हैं जिन्हें ब्रह्मकुण्ड (भागीरथी की ओर) व वशिष्ठकुण्ड (अलकानन्दा की ओर) कहते हैं। पंचप्रयागों में यह सर्वाधिक धार्मिक महत्व का है। यहाँ का एक आश्चर्य है कि इस क्षेत्र में कौवे नही दिखाई पड़ते है।

क्या है देवप्रयाग की मान्यता?

भगवान राम ने रावण वध के पश्चात यहां की यात्रा की थी। यहाँ का रघुनाथ (राम) मंदिर वर्तमान में इस घटना का साक्षी है। द्रविड़ शैली में निर्मित इस मंदिर की प्रतिस्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी। मंदिर के प्रवेश द्वारा पर माधो सिंह भंडारी की पुत्रवधू मथुरा वैराणी द्वारा गढ़वाल राज्य वंश के अधिपति पृथ्वीशाह के शासनकाल का एक लेख अंकित है।

देवप्रयाग को अन्य किन नामों से भी जाना जाता है? | देवप्रयाग क्यों प्रसिद्ध है?

देवप्रयाग को “सुदर्शन क्षेत्र” भी कहा जाता है। कहा जाता है कि सतयुग में देव शर्मा नामक ऋषि ने इस स्थल पर तप किया था जिससे इस क्षेत्र का नाम देवप्रयाग पड़ा। देवप्रयाग को “इंद्रप्रयाग” भी कहा जाता है, क्योंकि मान्यता है कि देवराज इंद्र ने इसी स्थान पर शिव की अराधना करके वरदान प्राप्त किया था, जिसके फलस्वरूप उन्होंने दधीचि ऋषि की हड्डियों से निर्मित वज्र का प्रयोग करके वृत्तासुर को युद्ध में हराया था। देवप्रयाग के संगम पर पिंडदान का विशेष महत्व है।

चन्द्रबदनी मंदिर (Chandrabadni Temple) –

चन्द्रकूट पर्वत कहाँ स्थित है?

टिहरी से श्रीनगर मोटर मार्ग पर काण्डीखाल से 8 किमी ऊपर पैदल मार्ग पर यह मन्दिर स्थित है। तीर्थ स्थलों में विख्यात सिद्धपीठ मां चन्द्रवदनी का मन्दिर “चन्द्रकूट पर्वत” पर स्थित है। यहाँ की अखंड ज्योति निरंतर प्रज्वलित है। यहां पर एक प्राकृतिक श्रीयन्त्र स्थापित है। स्कन्द पुराण में इसे भुवनेश्वरी पीठ कहा गया है।

चम्बा (टिहरी गढ़वाल) –

चम्बा नगर कहाँ स्थित है?

गंगोत्री मार्ग पर मसूरी से 60 किमी व नरेन्द्र नगर से 48 किमी की दूरी तथा नई टिहरी से 11 किमी. की दूरी पर समुद्र स तल से 1676 मीटर की ऊँचाई पर चम्बा नगर स्थित है। यह नगरीय क्षेत्र हिमाच्छादित हिमालय शिखरो एवं पवित्र भागीरथी घाटी के मनोरम दृश्यों को प्रस्तुत करता है।

मसूरी, ऋषिकेश, टिहरी एवं नई टिहरी से आने वाले मुख्य मार्गों के संगम स्थल पर स्थित होने के कारण यह एक केन्द्र बिन्दु के रूप में स्थापित हो गया है। विक्टोरिया क्रास प्राप्त करने वाले “गबरसिंह नेगी” यहीं के थे। उनकी स्मृति में यहां प्रतिवर्ष 21 अप्रैल को मेला लगता है।

धनोल्टी (मसूरी) Dhanaulti (Mussoorie) –

मसूरी चम्बा मार्ग पर स्थित यह स्थल मसूरी से 24 किमी एवं चम्बा से 29 किमी की दूरी पर स्थित है। देवदार, रोहडोडोनड्रान एवं बांज के घने एवं अक्षत वनों के मध्य स्थित धनौल्टी शान्त वातावरण का एक आदर्श स्थल है।

कैम्पटी जलप्रपात मसूरी (Campty Falls Mussoorie) –

देहरादून से कैम्पटी फ़ाल की दूरी कितनी है?

समुद्र तल से 1215 मीटर की ऊँचाई पर मसूरी-यमुनोत्री मार्ग पर मसूरी से 15 किमी. दूर टिहरी जिले में स्थित कैम्पटी जल प्रपात विशालतम एवं मनोहरतम जल प्रपात होने की विशिष्टता रखता है। यह जल प्रपात एक सुन्दर घाटी में स्थित है। एवं चारों ओर से विशाल पर्वतो से घिरा है। देहरादून से कैम्पटी फ़ाल की दूरी करीब 47.7 किलोमीटर है।

नरेन्द्र नगर –

‘आनंदा स्पा’ कहाँ स्थित है?

समुद्र तल से 1129 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह नगर मुनि की रेती (ऋषिकेश) से 16 किमी उत्तर स्थित है। पहले यह नगर गढवाल राज्य की राजधानी रहा है। कुछ वर्ष पूर्व तक यह नगर टिहरी गढ़वाल जिले का मुख्यालय था। परन्तु अब नई टिहरी शहर को टिहरी गढ़वाल जिले का मुख्यालय बना दिया गया है। यहाँ पास के घने जंगल में टिहरी नरेश का महल, जिसे अब ‘आनंदा स्पा’ कहा जाता है, स्थित है।

सुरकुंडा देवी –

सुरकुंडा देवी कहाँ स्थित है?

यह सिद्धपीठ टिहरी के जौनपुर ब्लाक में धनोल्टी से 8 किमी. की दूरी पर सुरकन्डा शिखर पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ सती का सिर गिरा था। यह राज्य का इकलौता सिद्धपीठ है जहाँ गंगा दशहरे पर विशाल मेला लगता है। देहरादून से सुरकुंडा देवी की दूरी करीब 62 किलोमीटर है।

नागटिब्बा –

नागटिब्बा की समुद्र तल से ऊँचाई 3048 मीटर है। लम्बी पद यात्राओं एवं साहसिक कार्यों में अभिरूचि रखने वाले पर्यटकों के लिए नागटिब्बा सम्पूर्ण अवसर प्रदान करता है। यह क्षेत्र घने जंगलों एवं प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण है। पर्यटक यहाँ से हिमालय के मनोरम दृश्यों का अवलोकन कर सकते है।

बूढ़ा केदार –

बूढ़ा केदार कहाँ स्थित है?

यह स्थल घनसाली ब्लाक से 31 किमी की दूरी पर है। यहां पर भगवान केदारनाथ का प्राचीन एवं भव्य मन्दिर है।

खतलिंग ग्लेशियर –

खतलिंग ग्लेशियर भिलंगना नदी का उद्गम स्थल है जिसके दाहिनी ओर दूध गंगा ग्लेशियर है। दूध गंगा ग्लेशियर दाहिनी ओर मसूर ताल है, जो खतलिंग ग्लेशियर से 6 किमी दूरी पर स्थित है।

विश्वनाथ गुफा –

शंकराचार्य की तपस्थली कहाँ स्थित है?

टिहरी जनपद के हिन्दाव पट्टी – केदारनाथ मार्ग पर विश्वनाथ पर्वत पर यह गुफा है। यह आदि शंकराचार्य की तपस्थली है। इस स्थान पर विश्वनाथ का प्रादुर्भाव हुआ था। यह स्थान या गुफा गुरु वशिष्ठ की तपस्थली के रूप में भी प्रसिद्ध है।

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