
पंढरपुर मंदिर कैसे पहुंचे? | पंढरपुर क्यों प्रसिद्ध है? | स्थापना
नमस्कार दोस्तों आज के इस लेख में हम आपको बताने वाले हैं कि आप पंढरपुर कैसे पहुंच सकते हैं, पंढरपुर क्यों प्रसिद्ध है, और आपको यहां कौन कौन सी जगह मिलेंगे जहां आप घूम सकते हैं तो अगर आप जानना चाहते हैं तो इसलिए को पूरा जरूर पड़े तो चलिए शुरू करते हैं।
पंढरपुर एक परिचय – श्री क्षेत्र पंढरपुर महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में चंद्रभागा ( भीमा) नदी के तट पर स्थित है। यहां भगवान विट्ठल ( भगवान कृष्ण के अवतार) विराजमान है। इस मंदिर की एक बहुत ही ऐतिहासिक कथा है। एक बार भगवान श्रीकृष्ण एक भक्त पुंडलिक को दर्शन देने पहुंचे।

पंढरपुर क्यों प्रसिद्ध है?
भगवान विष्णु के अवतार ‘बिठोबा’ और उनकी पत्नी ‘रुक्मिणी’ के सम्मान में इस शहर में वर्ष में चार बार त्योहार मनाए जाते हैं। मुख्य मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में देवगिरि के यादव शासकों द्वारा कराया गया था। यह शहर भक्ति संप्रदाय को समर्पित मराठी कवि संतों की भूमि भी है। शोलापुर से लगभग 60 कि.मी. पश्चिम की ओर चंद्रभागा अथवा भीमा नदी के तट पर महाराष्ट्र का यह सबसे बड़ा तीर्थ है।
पंढरपुर मंदिर की स्थापना कब हुई?
11वीं शती में इस तीर्थ की स्थापना हुई थी। सड़क और रेल मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचने योग्य पंढरपुर एक धार्मिक स्थल है, जहाँ साल भर हज़ारों हिंदू तीर्थयात्री आते हैं।
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कहा जाता है कि विजयनगर नरेश कृष्णदेव विठोबा की मूर्ति को अपने राज्य में ले गया था, किन्तु फिर वह एक महाराष्ट्रीय भक्त के द्वारा पंढरपुर वापस ले जाई गई। 1117 ई. के एक अभिलेख से यह भी सिद्ध होता है कि भागवत संप्रदाय के अंतर्गत वारकरी ग्रंथ के भक्तों ने विट्ठलदेव के पूजनार्थ पर्याप्त धनराशि एकत्र की थी। इस मंडल के अध्यक्ष थे रामदेव राय जाधव।
वास्तव में पौराणिक कथाओं के अनुसार भक्तराज पुंडलीक के स्मारक के रूप में यह मंदिर बना हुआ है। इसके अधिष्ठाता विठोबा के रूप में श्रीकृष्ण है, जिन्होंने भक्त पुंडलीक की पितृभक्ति से प्रसन्न होकर उसके द्वारा फेंके हुए एक पत्थर (विठ या ईंट) को ही सहर्ष अपना आसन बना लिया था।
पंढरपुर मंदिर कैसे पहुंचे?
रेल यात्रा – पंढरपुर, कुर्दुवादि रेलवे जंक्शन से जुड़ा हुआ है। कुर्दुवादि जंक्शन से होकर लातुर एक्सप्रेस गाड़ी नंबर – 22108, मुंबई एक्सप्रेस गाड़ी नंबर 17032, हुसैनसागर एक्सप्रेस गाड़ी नंबर 12702 तथा सिद्धेश्वर एक्सप्रेस गाड़ी नंबर 12116 समेत कई ट्रेने रोजाना मुंबई जाती हैं। पंढरपुर से भी पुणे के रास्ते मुंबई के लिए रेल चलती है।
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सड़क मार्ग – महाराष्ट्र के कई शहरों से पंढरपुर सड़क परिवहन के जरिए जय जा सकता है। इसके अलावा नॉर्थ कर्नाटक और उत्तर-पश्चिम आंध्रप्रदेश से भी प्रतिदिन यहां के लिए बसें चलती हैं।
वायु मार्ग – यहाँ का निकटतम घरेलू हवाईअड्डा पुणे है, जो लगभग 245 किलोमीटर की दूरी पर है। जबकि निकटतम अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा मुंबई में स्थित है।
विट्ठल किसका रूप है?
भगवान कृष्ण के अवतार – एक बार भगवान श्रीकृष्ण एक भक्त पुंडलिक को दर्शन देने पहुंचे। उस समय वह अपने माता पिता की सेवा कर रहा था पुंडलिक ने भगवान से कहा मैं अभी पिता के चरण दबा रहा हूं, आप थोड़ा विश्राम करें और उसने अपने पास पड़ी एक मिट्टी की ईंट उनके पास सरका दी। भगवान कमर पर हाथ रख कर वहीं पर खड़े रहे।
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पुंडलिक की मातृ पितृ भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान उसके द्वारा दिए गए पत्थर (ईंट) को ही अपना आसन बना कर वहीं खड़े हो गए। मराठी भाषा में ईंट को “विठ” कहते है इसलिए उन्हें विठोबा माऊली कहते है। माऊली का अर्थ मां होता है। क्योंकि वे अपने भक्तों पर माता की तरह स्नेह करते हैं।देश के कोने कोने से लोग यहां पताका व दिंडी लेकर पैदल यात्रा कर यहां पहुंचते है।

विट्ठल का मतलब क्या होता है?
मराठी भाषा में ईंट को “विठ” कहते है इसलिए उन्हें “विठोबा माऊली” कहते है। माऊली का अर्थ मां होता है। क्योंकि वे अपने भक्तों पर माता की तरह स्नेह करते हैं।
पंढरपुर में कौन सा मंदिर है?
महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में पंढरपुर नामक जगह पर भगवान विष्णु के स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण का प्रसिद्ध मंदिर है। यहां के विठोबा मंदिर श्रीकृष्ण श्रीहरि विट्ठल रूप में विराजमान हैं। यहां पर उनके साथ लक्ष्मी अवतार माता रुक्मणिजी की भी पूजा की जाती है।
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पंढरपुर कौन से राज्य में आता है?
पंढरपुर महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में चंद्रभागा ( भीमा) नदी के तट पर स्थित है।
पंढरपुर की यात्रा कब है?
पंढरपुर की यात्रा आजकल आषाढ़ में तथा कार्तिक शुक्ल एकादशी को होती है। देवशयनी और देवोत्थान एकादशी को वारकरी संप्रदाय के लोग यहां यात्रा करने के लिए आते हैं। यात्रा को ही ‘वारी देना’ कहते हैं। प्रत्येक वर्ष देवशयनी एकादशी के मौके पर पंढरपुर में लाखों लोग भगवान विट्ठल और रुक्मणि की महापूजा देखने के लिए एकत्रित होते हैं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को सपत्नीक प्रथम पूजा का मान दिया जाता है।
पंढरपुर मंदिर प्रवेश द्वार पर किसकी समाधि है?
मंदिर के प्रवेश द्वार पर संत नामदेव की समाधि है जो विट्ठल भगवान के परम भक्त थे। संत ज्ञानेश्वर, संत तुकाराम, संत गोरा कुम्भार, संत जनाबाई जैसे भक्तों ने अपनी भक्ति से भक्त और भगवान का मिलन कराया। यहां आने के बाद हमें वो अनुभूति होती है जिसका वर्णन संभव नहीं। पंढरपुर के कण कण में विट्ठल नाम समाया हुआ है। एक तुलसी के पत्ते से प्रसन्न हो जाते है भगवान।
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पंढरपुर मंदिर के आसपास के दर्शनीय स्थल कौन-कौन से हैं?
- श्री विट्ठल मंदिर के साथ ही यात्री यहां रुक्मिणीनाथ मंदिर
- पुंडलिक मंदिर
- लखुबाई मंदिर
- अंबाबाई मंदिर
- व्यास मंदिर
- त्र्यंबकेश्वर मंदिर
- पंचमुखी मारुति मंदिर
- कालभैरव मंदिर और शकांबरी मंदिर
- मल्लिकार्जुन मंदिर
- द्वारकाधीश मंदिर
- काला मारुति मंदिर
- गोपालकृष्ण मंदिर और श्रीधर स्वामी समाधि मंदिर के भी दर्शन कर सकते हैं
- पंढरपुर के जो देवी मंदिर प्रसिद्ध हैं, उनमें ‘पद्मावती’, ‘अंबाबाई’ और ‘लखुबाई’ सबसे प्रसिद्ध हैं।
- चंद्रभागा के पार श्रीवल्लभाचार्य महाप्रभु की बैठक है। 3 मील दूर एक गाँव में जनाबाई का मंदिर है और वह चक्की है, जिसे भगवान ने चलाया था।
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