पंचप्रयाग – उत्तराखण्ड में भागीरथी, अलकनंदा और मन्दाकिनी नदियों के संगम स्थल हैं जो कि पवित्र पंच प्रयाग कहलाते हैं, इन प्रयागों में स्नान करना पवित्र और पुण्यकारी कार्य माना जाता है।

हरिद्वार से 93 कि.मी. की दूरी पर हरिद्वार बद्रीमार्ग पर देवप्रयाग स्थित है। यहाँ भागीरथी एवं अलकनंदा नदियों का संगम है। इसी संगम पर देवप्रयाग बसा हुआ है। यहाँ से यमुनोत्री – गंगोत्री तथा केदारनाथ, बद्रीनाथ के मार्ग अलग-अलग हो जाते है । देव प्रयाग का महत्व प्रयागराज के समान है। यहाँ पर रघुनाथ जी के मन्दिर में काले पत्थर की एक चटटान से बनी हुई भगवान राम की मूर्ति है। यहाँ बाबा काली कमली वालों की धर्मशाला है।
1. देवप्रयाग । Devprayag Sagam
पौराणिक कथा है कि श्रीराम ने रावण का वध किया था अतः उन्हें रावण वध के कारण ब्राह्मण हत्या का दोष लगा था । ऋषि मुनियों ने श्रीराम को इस दोष से मुक्ति पाने का उपाय यह बताया कि वह भागीरथी एवं अलकनंदा नदी के संगम स्थल पर तपस्या करें । अतः ऋषि मुनियों के सुझाव को मानते हुये श्रीराम ने भागीरथी एवं अलकनंदा के संगम पर एक पत्थर की शिला पर बैठकर दीर्घकाल तक तपस्या की ।

देवप्रयाग में इस संगम स्थल पर आज भी एक शिला पर ऐसे निशान बने हैं जैसे किसी व्यक्ति के पालथी मारकर बैठने से मिट्टी में निशान बन जाते हैं, कहा जाता है कि यहीं बैठकर श्रीराम ने दोषमुक्त होने के लिये तप किया था। संगम पर हरि कुण्ड में स्नान व दान किये। जाते है । देव प्रयाग का रघुनाथ मन्दिर उत्तराखण्ड के अति प्राचीन मन्दिरों में से एक है। यह मन्दिर नदियों के संगम स्थल से थोड़ी ऊँचाई पर बना हुआ है। मन्दिर तक पहुचने के लिये पर्वत के पत्थरों को काटकर सीढ़ियाँ बनाई गई है।
वैसे तो इस रघुनाथ मन्दिर का निर्माण शंकराचार्य द्वारा कराया गया था लेकिन 1803 में इस क्षेत्र में आये भूकम्प से मन्दिर क्षतिग्रस्त हो गया था। तब इसकी मरम्मत दौलत राव सिंधिया जो कि ग्वालियर के राजा थे ने करवाई थी । यहाँ कई छोटे-छोटे मन्दिर एवं देवी देवताओं की मूर्तियाँ है। यहाँ हनुमान मन्दिर भी स्थित है। इसके अलावा कई गुफायें भी मौजूद हैं इसमें भगवान वामन गुफा, बलि गुफा एवं गोपाल गुफा प्रमुख है।
देव प्रयाग के सम्बन्ध में यह भी कहा जाता है कि यहाँ देव शर्मा नामक मुनि ने प्राचीन समय पर भगवान विष्णु की अराधना की थी तब भगवान विष्णु ने उन्हे आशीर्वाद दिया था कि यह क्षेत्र तुम्हारे नाम से विख्यात होगा। अतः देव शर्मा मुनि के नाम तथा अलकनंदा एवं भागीरथी नदीयों के संगम के कारण यह स्थान देव प्रयाग कहलाया। देवप्रयाग से ही भागीरथी गंगा जी के नाम से प्रसिद्ध होती हैं तथा हरिद्वार पहुँचती है।
2. रुद्रप्रयाग । Rudraprayag Sagam
रुद्रप्रयाग देव प्रयाग से 71 कि.मी. की दूरी पर स्थित है यह केदारनाथ व बद्रीनाथ जाने वाले मार्गों का मिलन स्थल है । यहाँ से केदारनाथ 84 कि.मी. तथा बद्रीनाथ 140 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।
यह स्थान अलकनन्दा और मंदाकिनी नदियों का संगम स्थल है। यहाँ एक प्राचीन शिवमन्दिर है जहाँ पर भगवान शिव की रूद्ररूप में आराधना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि महर्षि नारद ने यहाँ वर्षों तपस्या की थी तब भगवान शिव ने रूद्ररूप में नारद मुनि को आशीर्वाद दिया था। रुद्रप्रयाग ही वह स्थान है जहाँ महर्षि नारद ने महादेव शिव से उनके रुद्र रूप में संगीत की शिक्षा प्राप्त की थी, महादेव शिव ने यहीं पर उन्हें वीणा प्रदान की थी यहाँ प्रसिद्ध चामुंडा देवी का मन्दिर भी है जहाँ यात्री दर्शन हेतु जाते है।

रूद्रप्रयाग ही वह स्थान है जहाँ से रूद्रमहालय प्रारम्भ हो जाता है। यही वह क्षेत्र है जो देवभूमि कहलाती है। अलकनन्दा एवं मंदाकिनी नदियों के बीच का यह भाग अत्यन्त पावन एवं पवित्र माना जाता है यही वह क्षेत्र है जहाँ पाँचबद्री एवं पाँच प्रयाग आते है। लोक मान्यता यह भी है कि रूद्रप्रयाग से ही देवभूमि प्रारम्भ होती है। यहीं से रूद्र हिमालय प्रारम्भ हो जाता है। रूद्रप्रयाग शिव से सम्बंधित होने के कारण शिव के रूद्र नाम से रूद्र प्रयाग बना। नारद मुनि द्वारा यहाँ सहस्त्र नामों से महादेव शिव की स्तुति की गई थी।
3. कर्णप्रयाग । Karnprayag Sagam
रूद्रप्रयाग से 31 कि.मी. की दूरी पर हरिद्वार बद्रीनाथ मार्ग पर कर्ण प्रयाग स्थित है। यहाँ अलकनन्दा और पिदार गंगा (पिडंर नदी) का संगम स्थल है । ऐसी मान्यता है कि महाभारत युग में कर्ण ने अभेध्य शक्तियाँ प्राप्त करने के लिये यहाँ घोर तप किया था। यहाँ उमादेवी व कर्ण का मन्दिर दर्शनीय है। कहा जाता है कि स्वामी विवेकानन्द ने भी यहाँ कई दिनों तक योग ध्यान किया था।

कर्ण प्रयाग वह स्थान है जहाँ महाभारत काल में कुन्ती के पुत्र कर्ण ने तपस्या की थी। केदारखण्ड पुराण से ज्ञात होता है कि यहाँ नदियों के संगम पर देवताओं के स्थान एवं शिव क्षेत्र में उमा देवी मन्दिर में राजा कर्ण ने महादेव शिव की आराधना की थी। यहीं पर सूर्य की अराधना करने से सूर्य देव ने प्रसन्न होकर कर्ण को अभेद्य कवच एवं तुणीर प्रदान किया था तथा यहाँ का नाम कर्ण के नाम पर कर्ण प्रयाग रख दिया। यहाँ प्राचीन उमादेवी मन्दिर स्थित है। जो कि माता पार्वती को समर्पित है। यहाँ महादेव शिव, विष्णु एवं सूर्य देवता की मूर्तियाँ मौजूद हैं। यहाँ का उमा मन्दिर ही यहाँ की पहचान है।
4. नन्दप्रयाग । Nandprayag Sagam
कर्णप्रयाग से 22 कि.मी. की दूरी पर नन्द प्रयाग स्थित है ! यहाँ पर अलकनन्दा और नंदाकिनी नदी का पवित्र संगम स्थल है। यहाँ पर गोपाल जी का प्रसिद्ध दर्शनीय मन्दिर है जहाँ यात्री दर्शन हेतु आते है ऐसी मान्यता है कि इस पवित्र स्थल का नाम राजा नन्द के नाम पर रखा गया था जिनकी पत्नी यशोदा ने बचपन में भगवान कृष्ण का लालन – पालन किया था।
उत्तराखण्ड के पाँच प्रयागों में नन्द प्रयाग धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। केदारखण्ड पुराण के द्वारा ज्ञात होता है कि सतयुग में राजा नन्द ने यहाँ तपस्या की थी। नन्द ने यहाँ एक महायज्ञ का भी आयोजन किया था जिसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अलावा इन्द्र इत्यादि देवता एवं ऋषि मुनि भी उपस्थित हुये थे।

इस महायज्ञ के उपरान्त इस स्थान को नन्द प्रयाग के नाम से पुकारा जाने लगा। इससे पहले यह स्थान कर्ण्यासू के नाम से जाना जाता था क्योंकि महर्षि क की यह तपस्थली थी। मान्यता यह भी है कि नन्द प्रयाग ही वह स्थान है। जहाँ पर दुष्यन्त के पुत्र भरत का जन्म हुआ था जिनके नाम पर यह देश भारत वर्ष कहलाया। यही पर ऋषि कण्व के आश्रम में मेनका ने शकुन्तला को भी जन्म दिया था। इन कारणों से नन्द प्रयाग का धार्मिक महत्व बढ जाता है। अतः विशेष धार्मिक अवसरों पर श्रद्वालु यहाँ प्रयाग में स्नान कर पुण्य की प्राप्ती करते है।
5. विष्णुप्रयाग । Vishnuprayag Sagam
बद्रीनाथ मार्ग पर जोशीमठ से लगभग 12 कि.मी. दूर विष्णु प्रयाग स्थित है यहाँ पर अलकनन्दा और धौली गंगा का पवित्र संगम स्थल है। इसी स्थान पर नारद मुनि ने भगवान विष्णु की पूजा की थी । यहाँ पर भगवान विष्णु की प्रतिमा से सुशोभित प्राचीन विष्णु मन्दिर व विष्णु कुण्ड है । विष्णु प्रयाग के दाहिने ओर के पर्वत को नर तथा बायें ओर के पर्वत को नारायण कहते है। भगवत पुराण के एकादश स्कंद में भगवान विष्णु जी के अवतारों का उल्लेख किया गया है।
इसी में भगवान विष्णु ने तप मार्ग को प्रदर्शित करने के लिये नर नारायण के रूप में अवतार लिया था। इन्हीं दो भाईयों नर नारायण ने बद्रिकाश्रम में तपस्या की थी। उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर ही भगवान नारायण महाभारत काल में स्वयं कृष्ण एवं नर अर्जुन के रूप में अवतरित हुये थे। विष्णु प्रयाग में संगम स्थल पर उतरने के लिये सीढियाँ दुर्गम और डरावनी है उतरने में सावधानी रखना चाहिये । नदी का बहाव प्रचंड होने के कारण लोटे से स्नान करना समझदारी है।

जनधारणा है कि बद्रीधाम में प्रवेश करने से पूर्व विष्णु प्रयाग में स्नान करना फलदायक है। विष्णुप्रयाग तक अलकनंदा नदी पहाड़ो के बीच संकरी घाटी में बहती है। प्राचीन समय में जब तीर्थ यात्री यहाँ की पैदल चलकर यात्रा करते थे तब प्रयाग पर स्थित जय-विजय नामक पर्वतों को द्वारपाल के रूप में पूजा जाता था। यह भी माना जाता है कि यहाँ ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि देवताओं ने विशेष सिद्धियाँ प्राप्त की है। पुराणों के अनुसार देवर्षि नारद मुनि ने यहाँ भगवान विष्णु की उपासना की थी। यहाँ पर विष्णुकुण्ड, ब्रह्मकुण्ड, शिवकुण्ड, गणेशकुण्ड, सूर्यकुण्ड, भृगीकुण्ड, ऋषिकुण्ड, कुबेरकुण्ड, दुर्गाकुण्ड आदि कुण्ड है जिनमें स्नान करने से पुण्य की प्राप्ती होती है।
विष्णु प्रयाग स्वर्गारोहण का प्रवेश द्वार कहलाता है। यहीं हाथी पहाड़ है जिन्हें गजेन्द्र मोक्ष कहा जाता है। इनके पीछे पटसिला घाटी है. जिसके सम्बंध में कहा जाता है कि जब बद्रीधाम की समयावधि पूर्ण हो जायेगी तब यह दोनो पहाड पटसिला नाम स्थान पर मिल जायेंगे। तब पहाड़ों के मिलने से भक्तों का बद्रीनाथ धाम पहुंचना सम्भव नहीं हो।