मताधिकार किसे कहते हैं?
परिभाषा – सामान्य शब्दों में “राज्य के नागरिकों को देश के संविधान द्वारा प्रदत्त सरकार को चलाने हेतु अपने प्रतिनिधि को निर्वाचित करने को ही मताधिकार कहा जाता है “
लोकसभा का चुनाव सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर किया जाता है संविधान संसोधन अधिनियम 1989 द्वारा मताधिकार की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई। इस प्रकार लोकसभा के सदस्य अनता द्वारा प्रत्यक्ष निर्वाचन से चुने जाते हैं। लोक सभा में राज्यों को जनसंख्या के आधार पर सीटे आवंटित होती है। 64 में समोधन अधि. 2002 द्वारा लोकसभा की कुल सदस्य सीटों की संख्या 1971 की जनगणना के आधार पर कर दी गई है। यह निर्धारण वर्ष 2026 तक यथावत रहेगा।

लोक सभा चुनाव में कोई प्रत्याशी अपनी जमानत खो देता है यदि उसे वैध मतो का 1/6 भाग प्राप्त नहीं कर पाता।
लोकसभा का कोरम गणपूर्ति संख्या कुल सदस्य संख्या का 1/10 होता है। वही विपक्षी दलों की मान्यता हेतु –
- वह भारत का नागरिक होना चाहिए।
- आयु कम से कम 25 वर्ष होनी चाहिए। (अनु. 64)
लोकसभा का कार्यकाल कार्यकाल कितना होता है?
“कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। मंत्रिमण्डल की शिकारिश पर इसे नियत समय से पूर्व श्री दयाने द्वारा किया जा सकता। लोकसभा विघटन की स्थिति में 6 माह से अधिक नहीं रह सकती। अधिवेशन एक वर्ष में कम से कम दो अधिवेशन होते हैं। लेकिन इसके अधिवेशन की अन्तिम बैठक तथा अपने अधिवेशन की पहली बैठक हेतु नियत तिथि के मध्य 6 माह का अन्तर नहीं होना चाहिए।
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विशेष अधिवेशन –
राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा को नामंजूर करने के लिए लोकसभा का अधिवेशन तब बुलाया जा सकता है। जब लोकसभा के अधिवेशन में न रहने की स्थिति में कम से कम 110 सदस्य राष्ट्रपति को अधिवेशन बुलाने के लिये लिखित सूचना दें या जब अधिवेशन चल रहा हो तो लोकसभा अध्यक्ष को इस आशय की सूचना दें। ऐसी लिखित सूचना अधिवेशन बुलाने की तिथि के 14 दिन पूर्व देनी पड़ती है।
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पदाधिकारी –
लोकसभा अध्यक्ष –
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अध्यक्ष का निर्वाचन लोकसभा के सदस्यों द्वारा होता है। निर्वाचन किस तिथि को होगा इसका निर्णय राष्ट्रपति करता है। यह सामान्य सदस्य के रूप में शपथ लेता है। इसे लोकसभा का कार्यकारी सोल सभा के सदस्य के रूप में शपथ दिलाता है। लोकसभा अध्यक्ष को सभापति (उपराष्ट्रपति की भांति वेतन भने मिलते हैं। साथ ही लोकसभा अध्यक्ष को केन्द्रीय मंत्री की भांति भल्ला देने का प्रावधान है।
पदावधि –
लोकसभा अध्यक्ष, आगामी लोक सभा, के गठन के बाद उसके प्रथम अधिवेशन की प्रथम बैठक तक अपने पद पर बना रहता है। निम्न स्थितियों में अध्यक्ष अपने पद से मुक्त हो सकता है उपाध्यस को अपना त्यागपत्र देकर। लोकसभा के सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा अपने पद से हटा दिया जाता है। पर ऐसा संकल्प लोकसभा में पेश करने की सूचना 14 दिन पूर्व देनी चाहिये।
कार्य व शक्तियां –
- सदन में व्यवस्था व मर्यादा बनाये रखना।
- गणपूर्ति के अभाव में सदन ख्यापित करना की बैठक स्थगित करना ।
- लोक सभा के सचिवालय पर नियन्त्रण रखना।
- लोकसभा सदस्यों का त्यागपत्र स्वीकार करना।
- लोक सभा द्वारा पादित विधेयक को प्रमाणित करना।
- कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं इसका निर्णय करना।
- दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करना !
- पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन की अध्यक्षता करना ।
- दल-बदल कानून का उल्लंघन करने वाले सदस्यों को
- सदस्यता से अयोग्य निर्णत करना।
- अन्त संसदीय संघ में संसदीय दल के नेता के रूप में कार्य करना।
लोकसभा उपाध्यक्ष –
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लोक सभा के सदस्य सदन के उपाध्यक्ष को चुनते हैं। उपाध्यक्ष के चुनाव में वही प्रक्रिया अपनाई जाती है जो अध्यक्ष के चुनाव में अपनाई जाती है। यह अध्यक्ष को त्याग पत्र देकर अपना पद छोड़ सकता है।
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