कोटेश्वर महादेव उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जनपद के मुख्य शहर से 03 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है यहां एक गुफा है जहां पर महादेव ने साधना की थी सावन के महीने में यहां भक्तों का बहुत बड़ा जनसैलाब उमड़ उठता है।

नदी के जल से और बेल पत्री से सावन के महीने में लोग शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। यहां पर एक शनि देव की मूर्ति भी स्थापित है, जहां पर लोग तेल और काले कपड़े चढ़ाते हैं। यहां पर अन्य और भी छोटे-छोटे कई मंदिर हैं, जैसे माँ पार्वती, श्री गणेश जी, हनुमान जी, और माँ दुर्गा की जो मूर्तियाँ है, वो भी प्राकृतिक रूप से प्रकट हुई है और अन्य छोटे छोटे मंदिर भी यहां पर स्थापित हैं।
सावन के महीने में अत्यधिक बारिश के कारण नदी का पानी गुफा तक भी पानी आ जाता है जिस कारण प्रशासन द्वारा वहां पर उस समय पुलिस की तैनाती भी की जाती है जिससे लोगों को सुरक्षा मिले।
कोटेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण कब हुआ?
कोटेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण 14 वीं शताब्दी में किया गया था , इसके बाद 16 वीं और 17 वीं शताब्दी में इस मंदिर का पुनः निर्माण किया गया था | चारधाम की यात्रा पर आए ज्यादातर श्रद्धालु इस मंदिर को देखते हुए ही आगे बढते है। यह मान्यता है कि केदारनाथ धाम के दर्शन करने से पहले कोटेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन कर लेने से सातो जन्म के पापो से मुक्ति मिल जाती है।
कोटेश्वर महादेव मंदिर की कथा?
कोटेश्वर महादेव मंदिर के बारे में यह कहा जाता है कि भगवान शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए इस मंदिर के पास मौजूद गुफा में रहकर कुछ समय बिताया था। भस्मासुर ने शिवजी की आराधना करके ये वरदान प्राप्त किया था कि जिसके सिर पर भी वो हाथ रख देगा , वो उसी क्षण भस्म हो जायेगा। भस्मासुर भी बड़ा तेज था , इस वरदान को आजमाने के लिए उसने भगवान शिव को ही चुना फिर क्या था, शिवजी आगे-आगे और भस्मासुर उनके पीछे-पीछे।
कोटेश्वर महादेव मंदिर के बारे में यह कहते है कि भस्मासुर से बचने के लिए शिवजी ने कोटेश्वर महादेव मंदिर के पास स्थित इस गुफा में रहकर कुछ समय बिताया था। बाद में भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण करके भस्मासुर का संहार करते हुए शिवजी की सहायता की थी।
लोगों का यह भी मानना है कि कौरवों की मृत्यु के बाद जब पांडव मुक्ति का वरदान मांगने के लिए भगवान शिव को खोज रहे थे , तो भगवान शिव इसी गुफा में ध्यानावस्था में थे। मंदिर की यह मान्यता है कि केदारनाथ धाम के दर्शन करने से पहले कोटेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन कर लेने से सातो जन्म के पापो से मुक्ति मिल जाती है।
कोटेश्वर महादेव मंदिर किस नदी किनारे स्थित है?
गुफा के रूप में मौजूद यह मंदिर अलकनंदा नदी के किनारे पर स्थित है | मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने केदारनाथ जाते समय , इस गुफा में साधना की थी और यह मूर्ति प्राकर्तिक रूप से निर्मित है | गुफा के अन्दर मौजूद प्राकृतिक रूप से बनी मूर्तियाँ और शिवलिंग यहाँ प्राचीन काल से ही स्थापित है।
कोटेश्वर महादेव मंदिर से केदारनाथ और बद्रीनाथ की दूरी?
- केदारनाथ – 74 किलोमीटर, NH 107, यह दूरी गौरीकुंड सड़क तक है आगे 16 किलोमीटर पैदल है।
- बद्रीनाथ – 155 किलोमीटर, NH 07