नमस्कार दोस्तों आपके इस लेख में मैं आपको उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित)कागभुसांडी ताल के बारे में बताने वाला हूं जोकि ट्रेकिंग के लिए एक बहुत ही अच्छा ट्रेक है। यहां पहुंचने के लिए अगर आप मैदानी इलाकों से आ रहे हैं तो सबसे पहले आपको हरिद्वार, ऋषिकेश से श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, जोशीमठ होते हुए गोविंदघाट पहुंचना है।
नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान में कागभुसांडी ताल –
यह क्षेत्र प्राकृतिक विविधता के लिए संयुक्त राष्ट्र की विश्व धरोहर स्थल नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व के अंतर्गत आता है। यह ताल हाथी पर्वत में (6730 मीटर) की ऊंचाई स्थित है| प्राचीन कागभुसांडी ताल समुद्र तल से 6,730 मीटर की ऊंचाई पर हाथी पर्वत (कांकुल दर्रा) की गोद में बसा है। झील के किनारे बसंत के मौसम में विभिन्न हिमालयी फूलों से सुशोभित हैं, जो ठंडी हवा में झिलमिलाते रंग की पंखुड़ियों के साथ, किनारों पर खिलते हैं। इस जगह पर जाने का सबसे अच्छा समय जुलाई से सितंबर के बीच का है।

कागभुसांडी ताल कहाँ स्थित है।
गोविंदघाट से ही आपकी ट्रैकिंग शुरू होगी यह ताल समुद्र तल से 6730 मीटर की ऊंचाई पर हाथी पर्वत पर स्थित है। इस यात्रा के ट्रैकिंग आप सिर्फ तीन चार महीने के ही दौरान कर सकते हैं जैसे कि जून, जुलाई, अगस्त और सितंबर इन 4 महीनों में ही आप यहां पर ट्रैकिंग कर सकते हैं। इसके अलावा आप सर्दियों में यहां पर ट्रैकिंग नहीं कर सकते क्योंकि उस दौरान यहां पर बहुत ज्यादा मात्रा में बर्फ रहती है और यहां का टेंपरेचर भी बहुत ज्यादा डाउन हो जाता है।
यह उत्तर भारत के उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित है चमोली जिले में अन्य भी बहुत सारे ताल हैं जहां पर आप ट्रैकिंग कर सकते हैं जिनमें के प्रमुख हैं सतोपंथ ताल, स्वर्ग रोहिणी, रूपकुंड आदि यह ट्रैकिंग प्लेस भी आपके लिए काफी अच्छे हो सकते हैं। इस ट्रैक में आपका लगभग 15000 से 20000 रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से खर्चा आ जाएगा। यह खर्चा सिर्फ ट्रैकिंग के दौरान का है जो कि आप गोविंदघाट से शुरू करेंगे और इस साल तक पहुंचने और वापस आने में हो जाएगा। इसके अलावा आप गोविंदघाट तक किस माध्यम से आए कैसे आए वह खर्चा इसमें इंक्लूड नहीं किया गया है।
कागभुसांडी की कथा? | kagbhusandi ki katha
हाथी पर्वत की पहाड़ी की चोटी पर दो विशाल चट्टानों को एक कौवा (कागा) और एक चील (गरुड़) माना जाता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि कौआ चील के साथ ब्रह्मांड के मामलों पर गहन बातचीत कर रहा है। कागभुशुण्डि लोमश ऋषि के शाप के चलते कागभुशुण्डि कौवा बन गए थे। लोमश ऋषि ने शाप से मुक्त होने के लिए उन्हें राम मंत्र और इच्छामृत्यु का वरदान दिया। कौवे के रूप में ही उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत किया।
लोमश ऋषि परम तपस्वी तथा विद्वान थे। इन्हें पुराणों में अमर माना गया है। हिन्दू महाकाव्य महाभारत के अनुसार ये पाण्डवों के ज्येष्ठ भ्राता युधिष्ठिर के साथ तीर्थयात्रा पर गए थे और उन्हें सब तीर्थों का वृत्तान्त बतलाया था। लोमश ऋषि बड़े-बड़े रोमों या रोओं वाले थे। इन्होंने भगवान शिव से यह वरदान पाया था कि एक कल्प के बाद मेरा एक रोम गिरे और इस प्रकार जब मेरे शरीर के सारे के सारे रोम गिर जाऐं, तब मेरी मृत्यु हो।
जब रावण के पुत्र मेघनाथ ने श्रीराम से युद्ध करते हुए श्रीराम को नागपाश से बांध दिया था, तब देवर्षि नारद के कहने पर गिद्धराज गरूड़ ने नागपाश के समस्त नागों को खाकर श्रीराम को नागपाश के बंधन से मुक्त कर दिया था। भगवान राम के इस तरह नागपाश में बंध जाने पर श्रीराम के भगवान होने पर गरूड़ को संदेह हो गया।
गरूड़ का संदेह दूर करने के लिए देवर्षि नारद उन्हें ब्रह्माजी के पास भेज देते हैं। ब्रह्माजी उनको शंकरजी के पास भेज देते हैं। भगवान शंकर ने भी गरूड़ को उनका संदेह मिटाने के लिए काकभुशुण्डिजी के पास भेज दिया। अंत में काकभुशुण्डिजी ने राम के चरित्र की पवित्र कथा सुनाकर गरूड़ के संदेह को दूर किया।
कागभुसांडी लेक ट्रैक | kagbhusandi lake trek route
कागभुशंडी झील के लिए सुझाए गए ट्रेक यात्रा कार्यक्रम –
यहाँ तक पहुचने के दो रस्ते है एक भुइंदर गांव से, घांघरिया के पास से दूसरा गोविंद घाट / विष्णु प्रयाग से जाया जा सकता है।
पहला दिन : गोविंदघाट से भुंदर गांव होते हुए रूप ढुंगी (12 किलोमीटर)
दूसरा दिन : रूप ढुंगी से सम्राटटोली होते हुए राज खड़क (14 किमी)
तीसरा दिन : राज खड़क से कागभुसांडी झील (6 किमी)
चौथा दिन : कागभुसांडी से पंच विनायक होते हुए ब्रह्मकुंड / भैंस ताल (8 किमी)
पाँचवाँ दिन : ब्रह्मकुंड से फरस्वान विनायक होते हुए पेनका (15 किमी)
छठवाँ दिन : पेंका गांव से रोड तक (2.5 किमी)

kagbhusandi trek distance
काग भुसुंडि ताल ट्रैक की दूरी 60 से 65 किलोमीटर के लगभग है यानी कि आपको 60 से 65 किलोमीटर के लगभग पैदल चढ़ना और उतरना होगा वह काफी मुश्किल साबित हो सकता है लेकिन असंभव नहीं।
कागभुसांडी ताल कैसे जायें? | How to Reach Kagbhusandi Tal
कागभुसांडी ताल घांघरिया के निकट भियंदर गांव से या विष्णुप्रयाग से पहुंचा जा सकता है। भियंदर गाँव से ट्रेक घने भालू से भरे जंगलों और बिना किसी आश्रय के चुभने वाले बिछुआ के हिस्सों से होकर गुजरता है। कागभुशंडी की यात्रा के दौरान, आप बड़ी झाड़ियों, नदियों, ग्लेशियरों, दर्रों और चट्टानी क्षेत्रों से होकर गुजरेंगे। ट्रेक में लंबी दूरी पर कठिन इलाकों और फिसलन वाली चट्टानों पर चलना शामिल है। इस गांव से स्थानीय गाइड भी उपलब्ध हैं।
कागभुसांडी का अर्थ क्या है?
काकभुशुंडी या श्री काक भुसुंडी (संस्कृत: काकभुशुण्डी) हिंदू धर्म में हिंदू शास्त्रों में पाए जाने वाले एक ऋषि हैं । वह रामचरितमानस के पात्रों में से एक है, जो संत तुलसीदास के प्रमुख हिंदू ग्रंथों में से एक है। ‘काक’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘कौवा’।
यह एक छोटी-सी आयताकार झील (लंबाई में लगभग 1 किलोमीटर) है यह ताल हाथी पर्वत के तल पर फैली हुई है, इसका पानी हल्का हरा होता है और इसके किनारे विभिन्न शेड्स- गुलाबी, मौवे, ऑरेंज, प्यूरीज़, पेरीविंक ब्लू, क्रिमसन, गेरू, रंग के फूल खिलते हैं।
कागभुसांडी कौन सा पक्षी है?
कागभुसांडी – लोमश ऋषि के शाप के चलते कागभुसांडी यानि की कौवा बन गए थे। लोमश ऋषि ने शाप से मुक्त होने के लिए उन्हें राम मंत्र और इच्छामृत्यु का वरदान दिया। कौवे के रूप में ही उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत किया। वाल्मीकि से पहले ही कागभुसांडी ने रामायण गिद्धराज गरूड़ को सुना दी थी।