Gaganyaan mission – चलो सबसे पहले जानते हैं, गगनयान मिशन क्या है? और इसे डिवेलप करने में कौन-कौन अपना योगदान दे रहा है?
गगनयान क्रूड (crude) और वाइटल (vital) स्पेसक्राफ्ट है, यानी कि इसमें बैठकर इंसान स्पेस में जा सकते हैं। इसे, इसरो यानी (इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन) ने HAL यानी (हिंदुस्तान एरो नॉटिकल लिमिटेड) और DRDO यानी कि (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन) ने मिलकर बनाया है। गगनयान स्पेसक्राफ्ट के दो पार्ट हैं – क्रूड मॉड्यूल (crude module) और सर्विस मॉड्यूल (service module)। क्रूड मॉड्यूल वह पार्ट है, जहां पर भारत के एस्ट्रोनॉट्स बैठेंगे। एस्ट्रोनॉट्स (Astronauts) में दो या तीन एस्ट्रोनॉट्स भेजने की प्लानिंग की गई है।
क्रूड मॉड्यूल (Crude Module) –
क्रूड मॉड्यूल का वजन 3725 किलोग्राम है, एस्ट्रोनॉट्स (Astronauts) के बैठने और उनके सेफ्टी इक्विपमेंट (safety equipment) के रखे जाने के बाद इसका वजन करीब, 5300 किलोग्राम हो जाएगा। इसके बाद आता है सर्विस मॉड्यूल। सर्विस मॉड्यूल स्पेसक्राफ्ट का वह पार्ट है, जहां पर इसको चलाने के लिए फ्यूल (fuel) रखा जाता है, यह स्पेसक्राफ्ट से अलग भी हो सकता है। सर्विस मॉड्यूल का वजन करीब दो 2900 किलोग्राम होगा, और इस तरह गगनयान स्पेसक्राफ्ट का वजन करीब 8200 किलोग्राम का हो जाएगा।
आपको बता दूं कि, क्रूड मॉड्यूल और सर्विस मॉड्यूल के डिजाइनिंग का काम इसरो (ISRO) और HAL ने मिलकर किया है जबकि,
DRDO स्पेस में जा रहे एस्ट्रोनॉट्स को वहां के लिए जरूरी टेक्नोलॉजी, रेडियो मेजरमेसन डिवाइस, स्पेसग्रेड फूड और बाकी प्रोडक्शन से रिलेटेड इक्विपमेंट्स प्रवाइड करेगा। 11 जून 2020 को स्कैनकोड वर्जन को लांच किया जाना था। लेकिन कोविड-19 के कारण इसमें थोड़ा देरी आ गया है, और अब यह अनक्रूड (uncrude) वर्जन दिसंबर 2021 में लांच की जाएगी। और संभवतः 2022 के शुरुआत में ही इसकी क्रूड लॉन्चिंग की जाएगी।
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लॉन्चिंग –
अब बात करते हैं इसकी लॉन्चिंग की, कि कैसे इसकी लॉन्चिंग होने वाली है? अब जैसे कि अभी आपको बताया, क्रूड लॉन्चिंग 2022 के शुरुआत में होने वाली है। गगनयान को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से भेजा जाएगा। इसके लिए जीएसएलवी मार्क-3 वाइकल (vehicle) का इस्तेमाल किया जाना है। यह वही विकल है, जिसका इस्तेमाल चंद्रयान-2 मिशन में भी किया गया था।
लॉन्च के करीब 16 मिनट बाद यह रॉकेट गगनयान को धरती की सरफेस से करीब 400 किलोमीटर ऊपर छोड़ देगा। इसके बाद यह स्पेसक्राफ्ट 7 दिनों तक धरती को ऑर्बिट करेगा। जब इस स्पेसक्राफ्ट को वापस धरती पर आना होगा, इससे पहले यह अपने सर्विस मॉड्यूल और सोलर पैनल को अपने से अलग कर देगा। नीचे आते वक्त करीब इसकी स्पीड 216 मीटर P/S की होगी। इसे कंट्रोल करने के लिए स्पेसक्राफ्ट की सेफ लैंडिंग के लिए इसमें दो पैराशूट सिस्टम लगाए गए हैं।
मतलब अगर एक फेल हो जाता है तो, हमारे पास एक एक्स्ट्रा सिक्योरिटी होनी चाहिए। यह पैराशूट इसकी स्पीड को करीब 11 मीटर पर P/S कर देंगे। इसके बाद स्पेसक्राफ्ट को बंगाल की खाड़ी में लैंड कराया जाएगा। जी हां इसे समुद्र में लैंड कराया जाएगा। इस तरह की लैंडिंग को स्प्लेशडाउन लैंडिंग (Splashdown landing) कहा जाता है।
संकट-
इसरो ने गगनयान मिशन के बारे में टेक्नोलॉजिकल स्टडीज साल 2006 में ही स्टार्ट कर दी थी। मार्च 2008 तक इसकी डिजाइनिंग और प्लानिंग का काम पूरा कर लिया गया था। इसके बाद उन्होंने इस प्रोजेक्ट को इंडियन गवरमेंट के सामने पेश किया और, उनसे फंडिंग की मांग की करीब 1 साल के इंतजार के बाद फरवरी 2009 में इंडियन गवर्नमेंट ने इसके लिए कुछ फंडिंग रिलीज की पर पर्याप्त सपोर्ट नहीं दिया गया। इस मिशन के लिए टोटल 12000 करोड़ों की जरूरत थी, पर 2012 तक गवरमेंट ने केवल 5000 करोड़ ही रिलीज किए।
एक समय जब इसकी अनक्रूड लॉन्चिंग 2013 में ही तय की गई थी। उसे 2016 तक के लिए टाला गया. एक समय तो इसरो ने इस प्रोजेक्ट को अपनी प्रायोरिटी लिस्ट से ही अलग कर दिया था। और वह दूसरे प्रोजेक्ट पर ज्यादा फोकस करने लगे थे। लेकिन, 2017 में इंडियन गवर्नमेंट ने इस प्रोजेक्ट को फिर से शुरू करने के लिए फंडिंग प्रोवाइड करना शुरू किया।
और 15 अगस्त 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के क्रूड स्पेस फ्लाइट प्रोग्राम के बारे में ऑफिशियल अनाउंसमेंट की। लेकिन, अभी भी एक दिक्कत थी। भारत ने गगनयान को पूरी तरह डिजाइन तो कर लिया है, इसके हर पहलू की टेस्टिंग अच्छे से की जा चुकी है, और सभी सेफ्टी इक्विपमेंट्स को भी शामिल किया गया है। राकेट के फेल हो जाने की स्थिति के लिए ISRO ने री-एंट्री स्पेस कैप्सूल और सेफ क्रू मैकेनिज्म को भी विकसित कर लिया है।
मित्र देशों का सहयोग –
साल 2009 में ही गगनयान के क्रू मॉडल की नकल बना ली गई थी। और इसे सतीश धवन स्पेस सेंटर को डिलीवर कर दिया गया था। जिससे कि वहां पर एस्ट्रोनॉट्स की ट्रेनिंग हो सके। लेकिन, तमाम कोशिशों के बाद भी हमारे देश में एस्ट्रोनॉट्स की ट्रेनिंग के लिए पर्याप्त फैसिलिटी नहीं है। 01 जुलाई 2019 को ISRO और रसिया के रोस-कॉसमॉस की एक सब्सिडीयरी ग्लैब कोस-मॉस (Roscosmos) के बीच एक एग्रीमेंट हुआ था।
जिसके अनुसार रसिया हमारे एस्ट्रोनॉट्स के सिलेक्शन ट्रेनिंग सपोर्ट और मेडिकल एग्जामिनेशन के लिए अपना सहयोग देगा। रशिया की कैपिटल मार्को में इसरो अपनी एक यूनिट भी स्थापित कर रही है। जहां पर हमारे एस्ट्रोनॉट की फाइनल ट्रेनिंग होगी। और उन सभी टेक्नोलॉजीज और सिस्टम का डबलमेंट होगा जो, उनको स्पेस में बचे रहने के लिए जरूरी होंगे।

25 अक्टूबर 2019 को इसरो और ब्लैक कॉस-मॉस (Roscosmos) के बीच एक और कॉन्ट्रैक्ट साइन किया गया था। इसके अनुसार गगनयान मिशन में रसिया के लाइफ सपोर्ट सिस्टम और थर्मल कंट्रोल्स का भी इस्तेमाल किया जाएगा। इस सब के बीच यह समझना जरूरी है कि, चाहे कितनी भी बड़ी स्पेस एजेंसी क्यों ना हो, वह सब काम खुद नहीं संभाल सकती।
कोई ना कोई चीज जरूर सामने आती है, जिसके लिए उसे दूसरे देशों की स्पेस एजेंसीज की सहायता लेनी पड़ती है। नासा जैसी वर्ल्ड फेमस और मोस्ट एडवांस स्पेस एजेंसी भी इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन तक सामान को भेजने के लिए रोस्कॉसमॉस (Roscosmos) की मदद ले रही थी।
जबकि, अमेरिका और रसिया तो दुश्मन देश हैं, पर फिर भी यह स्पेस एक्सप्लोरेशन के लिए आपस में हाथ मिला रहे हैं। इसका मतलब यह है कि, अगर अभी हमारे पास एस्ट्रोनॉट्स की ट्रेनिंग के लिए पर्याप्त साधन नहीं हैं, तो इसके लिए रसिया की मदद लेने में कोई हर्ज नहीं है। अगर भारत का यह मिशन कामयाब रहा तो, रसिया अमेरिका और चाइना के बाद अपने खुद की टेक्नोलॉजी से स्पेस में इंसानों को भेजने वाले चौथा राष्ट्र बन जाएगा, जो कि हमारे लिए बहुत बड़ी अचीवमेंट होगी। इस मिशन के पीछे इसरो का लक्ष्य भारत के एस्ट्रोनॉट्स को स्पेस में पहुंचाने के साथ, इसके दौरान यह स्पेस में माइक्रो ग्रेविटी से रिलेटेड 4 बायो लॉजिकल और दो फिजिकल साइंस एक्सपेरिमेंट्स भी परफॉर्म करना है।
परीक्षण –
22 अक्टूबर 2020 को इसरो ने बेंगलुरु के ह्यूमन स्पेस एंड फ्लाइट एक्सप्लोरेशन इम्पोज़ियम (Human Space and Flight Exploration Imposium) में vyommitra (व्योमित्र:) नाम के एक फी-मेल ह्यूमनॉइड (humanoid) रोबोट को दुनिया के सामने रखा था। अभी तक जितने भी देशों ने स्पेस में इंसानों को भेजा है, उन्होंने टेस्टिंग के लिए एनिमल्स का इस्तेमाल किया है। पर इसरो ऐसा नहीं करना चाहता इसलिए उन्होंने व्योमित्र मित्र नाम का रोबोट बनाया है।
यह रोबोट न सिर्फ ऑन क्रू लॉन्चिंग के दौरान स्पेस क्राफ्ट में मौजूद होगा बल्कि, जब एस्ट्रोनॉट्स इसमें जाएंगे तो यह उनका भी साथ देगा। यह रोबोट हिंदी और इंग्लिश बोल सकता है और, किसी असली इंसान की तरह ही कई काम भी कर सकता है। स्पेसक्राफ्ट में बैठे ग्रुप को अगर कोई कन्फ्यूजन होता है तो, यह उन्हें सॉल्यूशन प्रोवाइड करेगा। यह उनको एक्सपेरिमेंट्स करने में भी मदद करने वाला है और, अगर क्रू मॉड्यूल के अंदर की कंडीशन इंसानों के लिए थोड़ी भी बिगड़ती है तो, यह रोबोट उसे तुरंत समझ जाएगा और अन्य एस्ट्रोनॉट्स उनको सूचित कर देगा।
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