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हरिद्वार से गंगोत्री कैसे पहुंचे? हरिद्वार से यमुनोत्री की दूरी

हरिद्वार से गंगोत्री

गंगोत्री की यात्रा –

यमुनोत्री में यमुना जी के दर्शन करने के उपरांत तीर्थ यात्री उत्तराखण्ड के दूसरे तीर्थस्थान श्री गंगोत्री जी की यात्रा हेतु प्रस्थान करते है । यमुनोत्री से तीर्थयात्री पुनः जानकी चटटी तक की पैदल यात्रा करके वापस आते है और वहां से बस अथवा मोटर गाड़ियों द्वारा यात्रा प्रारम्भ कर देते है यमुनोत्री से गंगोत्री की कुल दूरी 228 कि.मी. है। यह यात्रा इस प्रकार है –

हरिद्वार से गंगोत्री
हरिद्वार से गंगोत्री

धरासू – जानकी चट्टी से धरासू की दूरी 96 कि.मी. है किन्तु तीर्थयात्रियों को धरासू से 2 कि.मी. पहले ही धरासू मोड़ से उत्तरकाशी के लिये मुड़ना पड़ता है। दूसरा रास्ता सीधे धरासू होता हुआ टिहरी को चला जाता है।

उत्तरकाशी – धरासू से उत्तरकाशी 28 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह यहाँ का आधुनिक तरीके से बसा हुआ धार्मिक नगर है। यह 1150 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। मकर संक्राती पर हजारों तीर्थ यात्री यहाँ आकर गंगा स्नान करते है। यहाँ प्रसिद्ध विश्वनाथ मन्दिर, एकादश रुद्र मंदिर, ज्ञानेश्वर मन्दिर तथा कुट्टी देवी मन्दिर है।

यह जनपद मुख्यालय है यहाँ पर सभी सुविधायें उपलब्ध है। समयानुसार तीर्थ यात्री यहाँ विश्राम भी करते है और शिव के प्राचीन विश्वनाथ मन्दिर के दर्शन भी करते है। यहाँ राष्ट्रीय स्तर का नेहरू पवर्तारोहण संस्थान है। उत्तरकाशी में ठहरने हेतु अच्छे होटल, आश्रम धर्मशालाऐं, गेस्ट हाउस है तथा खाने पीने हेतु अच्छे भोजनालय और रेस्टारेंट भी मौजूद है। यहाँ से सभी स्थानों के लिये बस सुविधा उपलब्ध है।

मनेरी – उत्तरकाशी से गंगोत्री जाते समय 11 कि.मी. की दूरी पर मनेरी नामक स्थान है। यह विद्युत परियोजना का स्थल है । यहाँ भागीरथी के ऊपर बांध बनाया गया है जिससे यहाँ पर भागीरथी नदी झील के रूप में दिखाई देती है। पहाड़ के अन्दर से सुरंग के रास्ते भागीरथी का जल निकलने से सुन्दर फब्बारे का रूप दिखाई देता है । ड फब्बारे की फुहार से सड़क पर खड़े होकर बहुत से यात्री आनंदित होते

गंगनानी – मनेरी से 19 कि.मी. भटवाड़ी होते हुये 31 कि.मी. की दूरी पर गंगनानी नामक स्थान है। यहाँ अत्यधिक गर्म जल के स्त्रोत है। यहाँ का पानी गन्धक युक्त होता है । इस गर्म पानी के स्त्रोत पर महिलाओं और पुरूषों के स्नान के लिये अलग-अलग कुण्ड बनाये गये है। यात्री जब गर्म जल के इस कुण्ड में स्नान करता है तब उसकी यात्रा सम्बन्धी सम्पूर्ण थकान दूर हो जाती है। यात्रियों में स्नान के बाद एक नवीन स्फूर्ति जागृत हो जाती है। यहाँ पर कुण्ड के पास ही पाराशर ऋषि का प्राचीन मंदिर है। कई विदेशी यात्री अपनी त्वचा संबंधी बीमारियों के उपचार हेतु यहाँ आते है और कई दिनों तक यहाँ निवास करते हैं।

हरसिल – गंगनानी से 31 कि.मी. की दूरी पर हरसिल नामक स्थान है यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता देखते ही बनती है । यह स्थान 2620 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ सेबों के बाग है। यहाँ के सेब स्वादिष्ट होते है । यहाँ पर भागीरथी नदी का घाट अत्यंन्त सुहावना है जो कि यात्रियों को स्नान आदि के लिये आकर्षित करता है। यहाँ से पैदल रास्ते से 2 कि.मी. की दूरी पर सात छोटे-छोटे जलकुण्ड देखने लायक है । यहाँ भारतीय थलसेना की एक यूनिट हमेशा मौजूद रहती है क्योंकि चीन भारत सीमा यहाँ से अत्यधिक नजदीक है।

गंगोत्री – हरसिल से धराली, लंका, भैंरोघाटी होते हुए सभी तीर्थयात्री परन पावन धाम गंगोत्री पहुँचते हैं जो कि हरसिल से 26 कि.मी. की दूरी पर स्थित है ।

हरिद्वार- गंगोत्री यात्रा हेतु सामान्य जानकारी

वायुमार्ग – ऋषिकेशा से 17 कि.मी. की दूरी पर जौली ग्रांट हवाई अड्डा है यहाँ से नियमित उड़ाने नहीं है।

रेलमार्ग- हरिद्वार एवं ऋषिकेश रेल्वे स्टेशन यह दोनों स्टेशन दिल्ली तथा अन्य शहरों से नियमित रेल सेवा द्वारा जुड़े हुये हैं ।

सड़क मार्ग – गंगोत्री सड़क मार्ग द्वारा ऋषिकेश, देहरादून एवं हरिद्वार से जुड़ा हुआ है। अधिकतर तीर्थ यात्री हरिद्वार ऋषिकेश से ही गंगोत्री की यात्रा टिहरी, उत्तरकाशी होते हुये करते है। हरिद्वार से गंगोत्री की कुल दूरी 272 कि०मी० है। गंगोत्री के लिये आरामदायक बस सेवा उपलब्ध है।

ऊँचाई – उत्तराखण्ड के हिमालय पर्वत पर गंगोत्री 3140 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।

जलवायु – ग्रीष्म ऋतु में गंगोत्री का मौसम दिन में सुहावना तथा रात्रि में ठण्डा होता हैं। शीत ऋतु में यहाँ का तापमान शून्य डिग्री हो जाता है। तथा यह स्थान बर्फ से ढक जाता है। ग्रीष्म ऋतु में यहाँ हल्के ऊनी वस्त्र तथा शीत ऋतु में भारी ऊनी वस्त्रों का प्रयोग किया जाता हैं।

भाषा – यहाँ हिन्दी और गढ़वाली भाषा का प्रयोग होता है। आवश्यकतानुसार कुछ व्यक्ति/पर्यटक अंग्रेजी भाषा का भी प्रयोग करते हैं।

भ्रमणकाल – मई से नवंम्बर तक ।

भागीरथ की तपस्या का फल : गंगोत्री

जिस प्रकार सूर्य के बिना आकाश, पर्वतों के बिना पृथ्वी तथा वायु के बिना अंतरिक्ष की सुबह नहीं होती, उसी तरह जो देश एवं दिशाएँ गंगाजी से रहित हैं उनकी शोभा नहीं होती इसमें कोई संशय नहीं है ।

उत्तराखण्ड के चार धामों में यमुनोत्री के दर्शन के बाद गंगोत्री के दर्शन का विधान है। माँ गंगा का यह मंदिर उत्तराखण्ड में उत्तरकाशी पे लगभग १०० कि.मी. की दूरी पर, हिमालय पर्वत पर समुद्र की ऊँचाई से ३१४० मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। गंगोत्री गंगा नदी के उद्गम क्षेत्र में बसा हुआ विश्व प्रसिद्ध धार्मिक महत्व का स्थान है । यह क्षेत्र चारों ओर से बुरांश, देवदार तथा अन्य प्रजाति के घने एवं विशाल वृक्षों से घिरी हुई भागीरथी घाटी में स्थित है।

यही वह स्थान है जहाँ परन पावनी माँ गंगा ने स्वर्ग से अवतरण किया था। सर्वप्रथम यहाँ गंगा का अवतरण होने के कारण यह स्थान गंगोत्री कहलाया । प्राचीन समय में यहाँ मंदिर नहीं था केवल एक चबुतरा था जहाँ तीर्थ यात्रा के समय तीन-चार माह के लिए देवी-देवताओं की मूर्तियाँ पूजा-अर्चना हेतु रखी जाती थीं । तीर्थ यात्रा की समाप्ति के बाद यह मूर्तियाँ पुनः पास के गाँव मुखवा तथा धराली के मंदिरों में स्थापित कर दी जाती थी।

१८वीं सदी में गोरखाओं ने गढ़वाल पर अधिकार कर लिया था उस समय गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने यहाँ गंगोत्री में माँ गंगा के मंदिर का निर्माण कराया था। किन्तु अमर सिंह थापा द्वारा बनवाया गया मंदिर अब नहीं है । वर्तमान में गंगोत्री का मंदिर जयपुर राजस्थान के राजा माधौसिंह द्वितीय के द्वारा बनवाया गया है। यह मंदिर लगभग ३० फीट ऊँचा सफेद रंग का है इस मुख्य मंदिर के अन्दर माँ गंगा की मूर्ति स्थापित है ।

वर्तमान में गंगोत्री धाम में कई अन्य छोटे मंदिर भी हैं। जहाँ महालक्ष्मी, अन्नपूर्णा, जाह्नवी, सरस्वती, यमुना व भागीरथ और शंकराचार्य जी की मूर्तियाँ भी प्रतिष्ठित हैं, साथ ही शिवजी एवं भैरवनाथ का मंदिर भी घाट पर स्थित है। कहा जाता है कि गंगोत्री ही वह स्थान है जहाँ भगीरथ ने माँ गंगा को पृथ्वी पर अवतरित करने के लिए कठोर तपस्या की थी उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव शिव ने माँ गंगा को अपनी जटाओं में वहन करके पृथ्वी पर उतारा था। पुराणों के अनुसार स्वर्ग की बेटी गंगा देवी ने नदी का रूप लेकर महादेव की प्रार्थना पर भगीरथ के पूर्वजों को पाप मुक्त किया था।

हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार भारत पर महाराज सगर राज किया करते थे। सगर के पुत्र अत्यंत दंभी एवं अहंकारी थे । राजा सगर ने जब 100 वाँ अश्वमेघ यज्ञ किया तो अश्वमेघ के लिये उन्होंने घोड़ा छोड़ा। इन्द्र ने अश्वमेघ पूरा होने पर अपना इन्द्रासन जाता हुआ महसूस किया अतः उन्होंने अश्वमेघ के घोड़े को चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में लाकर बांध दिया। सगर के पुत्र जब घोड़े को खोजते हुये आये तब उन्होंने उस घोड़े को महर्षि कपिल के आश्रम में बंधा हुआ देखा । सगर के पुत्र कपिल मुनि को बिना प्रणाम किये ही उनकी आज्ञा के बगैर जब अश्व को ले जाने लगे तो अपना अनादर देखकर कपिल मुनि क्रोधित हो उठे जिससे सगर के अहंकारी पुत्र मुनि को अपशब्द कहने लगे । क्रोधित

होकर कपिल मुनि ने उन्हें भस्म कर दिया। इससे महाराज सगर के पुत्रों की आत्मा मोक्ष प्राप्त न कर सकी। महाराज सगर ने कपिल महर्षि से बहुत विनती की, कि पुत्रों को क्षमा कर दें महर्षि अपना श्राप तो वापस न ले सके किन्तु उन्होंने महाराज सगर को बताया कि यदि स्वर्ग से दिव्य गंगा नदी को धरती पर लाया जाये तो उनके पवित्र स्पर्श से आपके पुत्रों को मोक्ष की प्राप्ति होगी। महाराज सगर ने इसके लिये कठिन प्रयास किये किन्तु वह इसमें सफल न हो सके ।

अंततः उनके पौत्र भागीरथ ने हिमालय पर्वत क्षेत्र में कठोर तपस्या की तब स्वर्ग की बेटी गंगा नदी के रूप में स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुई। गंगा देवी का वेग अत्यन्त प्रचंड था वेग को कम करने के लिये भगवान शिव ने गंगा देवी को पहले अपनी जटाओं में लिया उसके बाद जटाओं से एक धारा के रूप में गंगा जी ने पृथ्वी को स्पर्श किया । भागीरथ के प्रयासों के कारण ही यहाँ गंगा जी का नाम भागीरथी पड़ा । गंगा नदी के उद्गम स्थल को गौमुख के नाम से जाना जाता है।

हिन्दू धर्म के अनुसार इस कलयुग में यदि महापापी भी इस स्थान पर स्नान, दर्शन व आचमन करेंगे तो वे स्वर्ग की प्राप्ति करेंगे। गंगा का मन्दिर गौमुख से 18 कि.मी. पहले ही स्थापित है । हर वर्ष मई से नवम्बर तक लाखों श्रद्धालु इस पावनधाम के दर्शन करते है । शीतकाल में यह स्थान बर्फ से ढक जाता है। मई माह में अक्षय तृतीया के दिन वैदिक रीति रिवाज व पूजा अर्चना के उपरांत गंगोत्री मन्दिर के पट खोले जाते है। गंगोत्री मन्दिर तक मोटर गाड़ियाँ आ जा सकती हैं । अतः गंगोत्री मन्दिर तक यात्रा करना आसान है। नवम्बर में शीतकाल में गंगोत्री मन्दिर के पट छह माह के लिये बन्द हो जाते है तब पूजा अर्चना के लिये गंगा माँ की मूर्ति गंगोत्री के पास स्थित मुखवा गाँव में आ जाती है और मन्दिर के पट खुलने तक गंगा माँ की पूजा यहीं की जाती है।

ऐसी मान्यता है कि महाभारत के युद्ध में पाण्डवों ने अपने सगे-सम्बंधियों के मृत्यु प्राप्त करने के कारण उनकी आत्मिक शांति के लिए यहाँ गंगा के उद्गम स्थल पर आकर देव यज्ञ किया था। गंगोत्री में नदी के अन्दर एक शिवलिंग प्राकृतिक चट्टान के रूप में मौजूद है। पौराणिक कथा के अनुसार महादेव शिव ने इसी चट्टान पर बैठकर अपनी जटाओं में माँ गंगा को लपेटा था । शीतकाल में जब गौमुख से गंगा के जल की धारा कमजोर हो जाने पर यह शिवलिंग दिखाई देता है । जिसे देखने से दैविक शक्ति की प्रत्यक्ष अनुभूति होती है ।

गंगा नदी का उद्गम स्थल गौमुख गंगोत्री मन्दिर से 18 कि०मी० और आगे है यह यात्रा पैदल तय करना होती है चारधाम यात्रा करने वाले बहुत कम लोग ही गंगोत्री के साथ गौमुख की यात्रा करते है गौमुख 4200 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह रास्ता कठिन अवश्य है लेकिन दुर्गम नहीं है रास्ते के दोनों ओर देबदार, भोजपत्र, कैल पदम आदि के है । गंगोत्री गौमुख जाने वाले रास्ते पर लगभग 10 कि०मी० की दूरी चीड़बासा नामक को चाय नाश्ता आदि मिलता है।

चीड़बासा 4 कि.मी. भोजबासा स्थित यहाँ पर्यटक आवास एवं लालबिहारी आश्रम जहाँ रहने की पर्याप्त व्यवस्था स्थान भोजपत्र वृक्ष बहुत पाये जाते इसी कारण इसका नाम भोजबासा है। यदि यात्री अपनी चलने की गति पर ध्यान तो उसी गौ मुख से गंगोत्री लौटा जा सकता अन्यथा सुबह चलकर वापस विश्राम भोजबासा ही करना पड़ेगा। भोजबासा गौमुख अब लगभग कि०मी० दूरी पर पहुँच गया पहाड़ों बीच बने हिम ग्लेशियरों बनी विशाल हिम गुफा अन्दर गंगा का जल हिमजल धारा के रूप में निकलता । इस जल निकास द्वार को ही गौमुख नाम से जाना जाता है।

गौमुख अथवा गंगोत्री गंगाजल स्नान करने से मनुष्य के सभी कष्टों, पापों नाश हो जाता है। गंगाजल मात्र स्पर्श से ही मनुष्यों पल भर में नष्ट हो जाते हैं जो व्यक्ति में स्नान करता है उसे मृत्यु उपरांत स्वर्गलोक प्राप्ति है। भगवान में समस्त देवी देवताओं निवास है और गंगा में हमेशा भगवान का निवास रहता जो मनुष्य पराये पराई स्त्री और दूसरे से छल कपट करने के बाद पाप का भागी है।

उस मनुष्य को पापमुक्त एक ही मार्ग है गंगोत्री स्नान माँ गंगे की उपासना जैसे कुटिलता छल कपट से धर्म का नाश होता है, अभिमान विद्या का नाश है, काम से बुद्धि का नाश होता है, क्रोध से तप का नाश हो जाता उसी प्रकार कलयुग देवी के मात्र दर्शन लेने से सभी कष्टों, बुराईयों एवं पापों नाश हो गंगोत्री गंगा दर्शन एवं गंगा स्नान करने बाद “ॐ नमो गंगाये विश्व रूपिण्यै नारायण्यै नमः” के उच्चारण से मनुष्य का तन और मन पवित्र हो जाते है।

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