हरि से मिलने का द्वार हरिद्वार –
हिमालय पर्वत की तलहटी में बसा हुआ नगर हरिद्वार एक धार्मिक शहर है। यह शहर तीन ओर से पहाड़ी से घिरा हुआ है शिवालिक पर्वत की पहाड़ियों से घिरे इस पावन धार्मिक शहर की बाईं ओर पवित्र पावन गंगा नदी बहती है । उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध चारधाम यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ, और बद्रीनाथ जैसे भारतीय संस्कृति का शाश्वत संदेश देने वाले अडिग धार्मिक स्थलों की यात्रा यहीं से प्रारम्भ होती है।

प्राचीन समय में “हरिद्वार को मायापुरी” के नाम से पुकारा जाता था । सप्तपुरियों में मायापुरी का अपना विशेष स्थान था क्योंकि गंगा के दर्शन का प्रथम अवसर यहीं प्राप्त होता है इसी कारण कुछ लोग इसे गंगाद्वार के नाम से भी जानते है। भगवान विष्णु के धाम बद्री विशाल के लिये यहीं से यात्रा की जाती है अतः इस शहर का नाम “हरिद्वार” होना उचित है क्योंकि हरि अर्थात भगवान विष्णु के दरबार में प्रवेश करने का मार्ग यही प्रारम्भ होता है। कुछ लोग इसे हरद्वार भी कहते है क्योंकि भगवान शिव का निवास स्थान केदारखण्ड भी यहीं स्थित है। हर हर महादेव – शिव की प्यारी भूमि केदारखण्ड जाने का मार्ग भी यहीं से प्रारम्भ होता है।
हरिद्वार ही भारत का एकमात्र ऐसा धार्मिक पवित्र शहर है जहाँ किसी न किसी मंदिर अथवा तीर्थ पर गंगा माँ सहित सभी देवी देवताओं की पूजा ‘अर्चना होती है। हरिद्वार एक मात्र ऐसा धार्मिक स्थान है जहाँ सम्पूर्ण वर्ष धार्मिक श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है हरिद्वार में प्रत्येक बारहवे वर्ष में पूर्ण कुम्भ तथा प्रत्येक छठे वर्ष में अर्धकुम्भ मेला लगता है। मेले के समय यहाँ लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान करने आते हैं।
ऐसी मान्यता है कि जो एक बार हरिद्वार में गंगा स्नान कर लेता है उसे करोड़ों तीर्थो का फल प्राप्त हो जाता है। यहाँ सैकड़ों देवी देवताओं के मन्दिर, धर्मशालायें, गंगा घाट मौजूद हैं। सन्त, महात्माओं, सन्यासियों की भीड़ हरिद्वार में हमेशा रहती है। यहाँ केवल धार्मिक आस्था वाले व्यक्ति ही नहीं आते अपितु यहाँ विदेशी पर्यटक भी शांति की खोज के लिये आते हैं। जो उन्हें यहीं प्राप्त होती है। यह शांतिधाम तथा मन्दिरों की नगरी है।
यहाँ कई दर्शनीय स्थल हैं जिनमें से मुख्य निम्न है –
हर की पौड़ी –
सम्पूर्ण हरिद्वार शहर ही दर्शनीय है किन्तु हरि की पौड़ी का अपना विशेष स्थान है। कहा जाता है कि यहाँ पर दक्ष तथा देवों ने भगवान विष्णु के साक्षात दर्शन किये थे। विष्णु भगवान की यहाँ कुम्भ पूजा होती है। यहाँ का तीर्थस्थल ब्रह्मकुण्ड कुम्भ के समय साधुओं सन्तों का विशिष्ट स्थान होता है। हरि की पौड़ी पर गंगा मन्दिर, शंकराचार्य मन्दिर, लक्ष्मीनारायण मन्दिर, गंगाधर मन्दिर और नवग्रह मन्दिर आदि है ब्रह्मकुण्ड की दक्षिण दिशा में गऊ घाट है। इस घाट पर स्नान करने से गौदान के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।
वैसे तो हर की पौड़ी पर हमेशा भीड़ रहती है। यह भीड़ सायंकालीन आरती के समय विशाल रूप ले लेती है। शाम के समय यहाँ पर होने वाली गंगा आरती का दृश्य अत्यन्त सुखद होता है। श्रद्धालु गंगाजी की पवित्र लहरों पर पत्तों के दोनों में दीप जलाकर फूलमालाओं के साथ प्रवाहित करते हैं।

सैकड़ो की संख्या में जलते हुये दीपक के दोनों को दूर से देखना बहुत सुन्दर दिखाई देता है। गंगा दशहरें के समय यहाँ विशाल मेला लगता है। देश के कोने-कोने से यहाँ लोग दर्शन करने हेतु आते हैं। हर की पौड़ी पर जगह-जगह पंडित कथा एवम भागवत वाचक ऊँचे मंचों पर बैठकर रामायण भागवत पुराण आदि से संबंधित धार्मिक
उपदेश देते हैं यहाँ पर नाईयों की लाइने लगी रहती हैं । यहाँ लोग आकर मुण्डन संस्कार कराते हैं। हर की पौड़ी पर प्रतिदिन हजारों व्यक्ति बाहर से आकर दर्शन करते हैं। यहाँ पर पण्डे पुजारियों की भीड लगी रहती हैं। हरिद्वार आने वाला शायद ही कोई ऐसा होगा जो हरि की पौड़ी पर न आता हो यहाँ पर स्थित कुशावर्त घाट पर लोग आते है और अपने पितरों को पिण्डदान देते है जिससे उनके पितरों को मुक्ति प्राप्त होती है। ऐसा कहा जाता है कि यहीं पर मुनि दत्तात्रेय ने एक पैर पर खड़े होकर हजारों वर्षों तक तप किया था।
मंशादेवी मन्दिर –
यह प्राचीन मन्दिर शिवालिक पर्वत के ऊपर स्थित है। मंशा देवी मन्दिर हरिद्वार का सबसे प्रसिद्ध एवं दर्शनीय मन्दिर । इस मन्दिर के दर्शन करने हेतु दूर-दूर से व्यक्ति आते हैं । इस मन्दिर पर पैदल तथा ट्राली (रोपवे) द्वारा पहुँचा जा सकता है। मंशा देवी मन्दिर से हरिद्वार शहर बहुत सुन्दर दिखाई देता है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ देवी के दर्शन करने वालों की मंशा (इच्छा) पूरी होती है।

मायादेवी मन्दिर –
यह 11वीं शताब्दी का बना हुआ प्राचीन मन्दिर है । यहाँ पर भैरवी त्रिमस्तकी देवी दुर्गा जी की मूर्ति है जिनके एक हाथ में त्रिशूल और एक हाथ में नरमुण्ड है । यह साधकों का एक महत्वपूर्ण सिद्धपीठ है । यहीं पर अष्टभुजी शिवजी के दर्शन किये जा सकते हैं । भीमगोडा मन्दिर :- यह प्राचीन मन्दिर महाभारत काल का माना जाता है ।

कहा जाता है कि भीम ने अपना गोडा मारकर यहाँ कुण्ड बनाया था जिसे आज भी देखा जा सकता है। लोगों की मान्यता है कि जब पाचों पांडव हिमालय पर्वत की ओर जा रहे थे तब विश्राम करने के लिये वह इस स्थान पर रूके थे तब भीम ने अपने घुटने की शक्ति से इस कुण्ड को बनाया था। इसमें स्नान करना पुण्य का काम माना जाता है ।
चण्डीदेवी मन्दिर –
हरिद्वार में गंगा के दूसरे किनारे पर नील पर्वत पर चार कि०मी० की चढाई की दूरी पर चण्डी देवी का प्रसिद्ध मन्दिर है इसे कश्मीर के राजा सुचात सिंह ने 1929 में बनवाया था यहाँ जीप, कार, घोड़ो से पहुँचा जा सकता है। कुछ धर्म प्रेमी यहाँ की पैदल यात्रा भी करते है। यहाँ पर लगने वाला चण्डी चौदस का मेला काफी प्रसिद्ध है।
चण्डी मन्दिर के पास ही पहाड़ की दूसरी ओर माता अंजनी देवी का मन्दिर है । चण्डीदेवी के मन्दिर से नीचे गंगा के किनारे नीलेश्वर महादेव का मन्दिर है । चण्डीदेवी मन्दिर आने जाने हेतु अब रोपवे भी शुरू हो चुका है। हरिद्वार की यात्रा करने वाले धार्मिक श्रद्धालु इन मन्दिरों में शक्तिभाव से दर्शन करने आते है।

सप्तऋषि सरोवर यह सरोवर हर की पौड़ी से लगभग पांच कि०मी० की दूरी पर स्थित है। यहाँ पर गंगा माँ छोटी-छोटी सात धाराओं में विभाजित होकर बहती हुई हर की पौड़ी की ओर जाती है। कहा जाता है कि यहाँ पर सात ऋषि तप कर रहे थे। गंगा जी किसी भी ऋषि को नाराज नहीं करना चाहती थी । अतः वह सात धाराओं में बहकर सभी ऋषियों की परिक्रमा करती हुई आगे गई। यह स्थान अत्यन्त रमणीक और दर्शन करने योग्य है।
कनखल –
कनखल हरिद्वार से लगभग तीन कि०मी० की दूरी पर स्थित है। आज कनखल और हरिद्वार में भेद करना मुश्किल है क्योंकि दोनों ही मिलकर एक हो चुके हैं। स्वर्ग से गंगाजी के आगमन पर उन्हें शिवजी ने यहीं पर अपनी जटाओं में सम्भाला था। इस कारण गंगा जी के चरण कनखल में माने जाते हैं। कनखल राजा दक्ष की राजधानी थी राजा दक्ष की पुत्री सती से शिवजी का विवाह यहीं पर हुआ था।
कनखल के बारे में कहा जाता है कि एक दिन अस्मचित नामक राक्षस अपने दल सहित कनखल में लूटपाट करने आया था। यहाँ किसी स्थान पर हो रहे धार्मिक प्रवचनों को जब उसने सुना तो वह वही रूक गया। इन प्रवचनों का उसके ऊपर बड़ा प्रभाव पड़ा उसने उसी क्षण से अपनी राक्षसी प्रवृत्ति को त्यागकर ईश्वर का स्मरण और अच्छे कार्यों को करने में अपने को समर्पित कर दिया। इसी कारण कालिदास ने अपने प्रसिद्ध काव्य मेघदूत में कनखल के बारे में लिखा है कि कौन सा दुष्ट राक्षस है जो यहाँ आकर गंगा स्नान करके अपनी राक्षसी प्रवृत्ति से मुक्त नहीं हो जाता।

इनके अलावा कनखल में सतीकुण्ड, नागतीर्थ, सुमंत्रतीर्थ, लक्ष्मण मंदिर मुनि कुण्ड, इन्द्र कुण्ड, वीरभद्र मंदिर, पंचमुखी महादेव मंदिर, गुरूद्वारा अमरदास जी, हरिहर आश्रम तथा अवधूत मण्डल यह हनुमान जी का मंदिर है इस मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति वास्तविक प्रतीत होती है। कनखल के यह सभी स्थान दर्शन करने योग्य हैं।
दक्षेश्वर महादेव मंदिर –
दक्ष महादेव मंदिर कनखल में स्थित है। यह मंदिर यहाँ के प्राचीन मंदिरों में से एक है। यहाँ सम्पूर्ण भारत से महादेव के दर्शन करने हेतु लोग आते है। शिवरात्रि के अवसर पर यहाँ विशाल मेला लगता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव का अपमान होने पर माता सती के यज्ञाग्नि में भस्मसात हो जाने पर शिवगण वीरभद्र ने दक्ष प्रजापति का यज्ञ विध्वंस कर दिया था बाद में यहाँ पर राजा दक्ष के द्वारा शिव जी की आराधना की गयी। तब यहाॅ दक्षेश्वर महादेव की स्थापना हुई ।

यह मंदिर नीलधारा और गंगाजी के संगम पर स्थित है। इस मंदिर के एक भाग में दक्ष यज्ञ कुण्ड है जहाँ माता सती ने अपने प्राणों का परित्याग किया था। दूसरे भाग में शिवलिंग स्थित है इनके ऊपर प्रतिदिन गंगाजल चढाकर पूजा-अर्चना की जाती है, दक्षेश्वर मंदिर के एक किनारे पर माँ गंगा जी का मंदिर है।
प्रवृत्ति को त्यागकर ईश्वर का स्मरण और अच्छे कार्यो को करने में अपने को समर्पित कर दिया। इसी कारण कालिदास ने अपने प्रसिद्ध काव्य मेघदूत में कनखल के बारे में लिखा है कि कौन सा दुष्ट राक्षस है जो यहाँ आकर गंगा स्नान करके अपनी राक्षसी प्रवृत्ति से मुक्त नहीं हो जाता।
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